मेरे लफ़्ज़

लफ़्ज़ों को रौशनाई का साथ दे दूँ गर

कोई काग़ज़ ऐसा मिल जाए

शब के अंधेरों में भी जिसमें

सब कुछ नज़र आए

तब वो भी पढ़ पाएंगे मेरे इन जज़्बातों को

गर उनके पास मेरे लिए

पल दो पल का वक़्त निकल आए...

7 टिप्पणियाँ:

तब वो भी पढ़ पाएंगे मेरे इन जज़्बातों को
गर उनके पास मेरे लिए
पल दो पल का वक़्त निकल आए...
खूब लिखा है शबनम। अच्छा है। सुन्दर।

 

बस यही दो पल का वक्त ही तो नहीं निकल रहा है.....ना ही कोई निकालना चाहता है...

 
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कितने पैयकर ख़ला में ढाले हैं
अपने अल्फाज़ फिर भी काले हैं ।

पैयकर - रूप
ख़ला - शून्य

आप सब को ईद की दिली मुबारकबाद

 

दिल के जज़्बातों को समझने के लिए वक़्त होना बहुत ज़रूरी है ......... एक अच्छी नज़्म ...........

 

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