दौर-ए-उलझन


दौर उलझनों का

सुलझता ही नहीं...

वक़्त की रफ़्तार

बढ़ती भी नहीं...

धुंध में लिपटी

ख्वाहिशें सभी...

ज़िन्दग़ी का सफ़र

काटे कटता नहीं...

चन्द रोज़ पहले

ख़ामोश जज़्बात हुए...

पर सूरत-ए-हाल

छिपता ही नहीं...

यादों के चराग़

आँखों में जले...

कोशिशें हुई तमाम

शब फ़िर भी रूठी रही...