तुम्हारा प्रेम पत्र



कल ही मिला
किताब में छुपा हुआ था,
नहीं
रखकर भूली नहीं थी
दरअसल,
छुपाने के लिए
किसी जगह की तलाश
वहीं ख़त्म हुई थी,
बदनसीब था
मेरा पहला प्रेम पत्र भी
किस किस से छुपता रहा
वक्त की धूल ने
पीला सा कर दिया है कुछ
नहीं, मुझे याद है
जब दिया था तुमने
उजला सा था
हमारे प्रेम की तरह
और हां
उसमें महक भी थी
तुम्हारी,
शब्द इसके कुछ
धुंधले से पड़ गए हैं
पर यकीन मानो
वो एहसास अभी भी साफ हैं
बहते पानी से
एकदम साफ,
देखो न
समय कितना बदल गया है
अब तुम नहीं रहे
मेरे साथ
अब मैं हो चुकी हूं
किसी और की
लेकिन
फिर भी
एक चीज़ नहीं बदली है
वो प्रेम-पत्र तुम्हारा
आज भी मजबूर है
छुपकर रहता है
किताब के पन्नो में कहीं।




'काश..' के बाद की दुनिया

एक काश... के बाद
होती है अलग ही दुनिया
वो दुनिया
जिसकी हमे ख्वाहिश है,
जिसकी शक़्ल
इस तरफ की दुनिया से
कुछ अलग है,
कुछ ज़्यादा खूबसूरत
किसी नूर से सजी हुई,
लेकिन,
मुझे लगता है अक़्सर
वो दुनिया,
जो अक़्स है ख्वाबों का मेरे
क्यों काश... ने बेईमानी कर
अलग कर दी है मुझसे,
वो काश... के बाद की
ख़्वाबों वाली दुनिया।