हम भारतीयों से ज़्यादा धार्मिक तो पुरे विश्व में और हो ही नही सकता ...अपना समस्त जीवन हम लोग इसी धर्म की आड़ में बिता सकते है.सबसे विशेष (संभवता महान) बात तो यह है की यहाँ के हर इंसान के लिए धर्म का अपना अलग ही मतलब है ...अरे ऐसे ही थोडी ये देश धार्मिक विविधता पाई जाती है...किसीकी रोज़ी-रोटी धर्म है....तो किसीका "टाइम-पास" है धर्म...अजी धर्म सम्प्रदायों के नाम पर तो यहाँ लोग अपना (कई बार दूसरो का भी) जीवन समाप्त कर लेते है...अपने धर्म को पढ़े समझे बिना ही यहाँ का हर एक इन्सान धार्मिक विषयों पर लम्बे चौङे व्याख्यान दे सकता है।बताओ होगा कोई हमारी तरह अन्तर्यामी? तो इस तरह हुए न हम और हमारे धर्म महान..
‘संस्कृति’..वो तो हमारी आन-बान-शान है।अपनी संस्कृति पर हमें जितना गर्व है मजाल है किसी अन्य देश को हो।हमारी संस्कृति पर कोई एक आँख उठाकर देखे तो सही..तलवारे निकल जाएंगी साहब..आग लगा दी जाएगी..भले ही उससे हमारी संस्कृति को ही नुकसान पहुँच जाए..पर ऐसी ही अपनी नाक थोङी न कटने देंगे।अरे अब यही तो है हमारी संस्कृति..हर बुरे काम करके भी नाक ऊँची करके चलना।होगी इससे महान कोई संस्कृति भला..
जहाँ तक बात रही महापुरूषों की तो उसका तो हमारा देश गढ़ है।अरे नहीं मैं मजा़क नहीं कर रही।यकीन कीजिए।अगर नहीं हो रहा हो तो हमारे देश का इतिहास ही देख लीजिए।अवश्य आपका सामना ऐसे महापुरूषों से हो जाएगा।तब तो आपको मेरी बात माननी ही पङेगी।कोई भी कांड कर दो..उसको साम्प्रदायिक रंग में रंग दो..फिर देखो कैसे बनते हो महापुरूष..अरे इतिहास(बरबादी का) के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों से नाम लिखा जाएगा आपका।हो सकता है ऐसा किसी अन्य देश में भला..
तो हुआ न हमारा देश महान..अरे माथे पर बल न डालो जनाब।हाँ छोटी-मोटी परेशानियां जैसे ग़रीबी,बेरोज़गारी,साम्प्रदायिकता,अशिक्षा,बिमारियां,उग्रवाद,आतंकवाद आदि ज़रुर है..तो क्या..भला ये छोटी-मोटी परेशानियां हमारे देश को महान होने से रोक सकती है..??? अरे जाइये आप कुछ भी कहिये..इतनी सारी बुराईयां और कमियां है तो क्या,मैं तो फिर भी कहूँगी कि “मेरा देश है महान”।
(मित्रों जानती हूँ कि मेरा ये लेखआपमें से कुछ लोगों की भावनाको ठेस पहुँचाएगा..उसके लिएमाफ कीजिएगा..पर जो देख रहीहूँ..महसूस कर रही हूँ..उसे लिखनेसे खुद को रोक नहीं सकती।)
15 टिप्पणियाँ:
अच्छा कटाक्ष ...
फिर भी मेरा देश महान (!)
सच ही बोलीं शबनम खान |
पढ़ कर अच्छा लगा |
सर्वप्रथम कोई भी देश किसी भी अन्य देश से कभी भी तुलना नहीं कर सकता है ...........परन्तु आपने तुलनात्मकता को तरजीह देने की कोशिश की है । ये तो आपकी मर्जी है। जहां तक महानता का सवाल है आपके अनुसार महानता क्या है ? बताईये , किसी भी देश को आप देख लें वहां सब समानान्तर नहीं मिल सकता यानि कि कुछ विषय पर वह बहुत आगे मिलेंगें तो कहीं फिसड्डी । ऐसे में मेरा मानना है कि हमको सकारात्मक सोच रखनी चाहिये । देश में बहुत सी बुराईयां व्याप्त है पर आपसे सवाल यह है कि आपने इन बुराईयों को दूर करने के लिए अब तक क्या प्रयास किया ? हम सभी रोना रोते है कि फलां सरकार ने ये नहीं किया , वो नहीं किया... परन्तु कोई भी देश उस देश ने नागरिकों से जाना जाता है , उनके क्रिया-कलाप से जाना जाता है । साथ ही आप किसी एक मात्र ऐसे देश का नाम बता दीजिये जो भारत जैसी विविधता रखता हो । धर्म को निशाना हम आप ही तो बनाते है ऐसा होता किस लिए है ? अपनी खामियों को दूसरों पर न डालकर खुद को सुधारें तो बेहतर होगा ।
अंधों के इस देश में आईना बेचने निकली हो आप...अच्छा है लेकिन ध्यान से कहीं धर्म और संस्कृति के तेज़ाब से आपका ही चेहरा ना झुलस जाये और अपने आईनें में आप ही अपने चेहरे को बदसूरत देखें।
प्रयास अच्छा है लेकिन क्या आप मुझे वो तरीका बता सकती हैं जिससे धर्म और संस्कृति की इय दीवार को जड मे गिराया जा सके।
आपके ज़वाब का इन्तज़ार रहेगा।
पोस्ट अच्छी है।
और विचार भी अच्छे हैं।
काम कितना कठिन है जरा सोचना।
गाँव अंधों का हो आईना बेचना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shabnam......... main na daily tumhara fan hota ja raha hoon....... tumhare writing mein jo refinement mujhe dikh raha hai na.........usse main bahut impressed hoon..........
hats off to u.......
bahut achcha laga yeh lekh.......
अंधो के शहर में हम भी रोज आईना बेचा करते है श्यामल सुमन जी। और जवाब मिलता है कि पहले खुद का चेहरा देखो।
खैर प्रयास तो अच्छा है ही और कठिन भी है।
लगता है कि इस दुनियाँ मे अमृत भाई को छोड़कर सभी अन्धे हो गये, भईया सबकुछ इनकों ही दिखता है।
शनबम जी
शबनम जी बस ऐसे ही लिखती रहिए मेरी दुआयें आपके साथ है । वैसे जहाँ तक मैं जान पाया हूँ आपको इस लेख से कि आप बुराईयाँ देखने में ज्यादा दिलचस्पि रखती हैं। अच्छी बात है सबका अपना अपना-अपना नजरीया है। लेकिन जब यहाँ बात भारत को लेकर आती है तो इस मामलें पर कुछ तो जरुर कहना चाहूँगा, क्या करूं मै भी चुप नहीं रह पाता। न पता आप क्या देखके भारत की खामियाँ गिना रही है अरे खाँमिया तो सभी ढूढँ ही लेते है अब जरा अच्छाईया भी आप बता देंती इतनी ही लगन के साथ तो बात और बढ़िया बनती। आप लिखती अच्छा हैं इसमे कोई दो राय नहीं है, लेकिन अगर हम किसी देश की या किसी व्यक्ति विशेष की बुराईयाँ ही देखते रहें तो इसका मतलब तो ये हुआ न की हम उसकी अच्छाईयों को दबा रहे है क्या ये ठिक होगा, 'इसका जवाब जरुर दीजियेगा अगर हो सके ??
क्या किसी की नकारत्मक बातों पर ज्याद प्रकाश देना अच्छा होगा, क्या उससे उसकी सुधार होगी, नहीं कभी नहीं । अगर आप देखे तो आप को पता चलेगा कि कुछ वर्षो पहले भारत कहाँ था और अब कहाँ है। समय के साथ-साथ जरुरते भी बढ़ती जाती है, तो इसका मतलब ये तो नहीं कि देश में कमी है । कमी हर देश में है, लेकिन जब कभी हम तुलना करते है तब हम हमेशा उसकी बुराईयाँ ही देखते है न पता क्यो ?
और अन्त में आप से यही निवेदन है कि भारत कि संस्कृति और भारत ने दुनियाँ को क्या दिया इसका भी उल्लेख आप किसी पोस्ट के माध्यम से जरुर दीजियेगा ।
और आपको इसको लेकर कोई दिक्कत हो तो अपना छोटा भाई समझ के बेझिझक कहियेगा ।
शायद जरूरत ये सोचने की भी है की हमने देश के लिए क्या किया है. बातें तो सब कर लेते हैं... और पिछले कई दिनों से सब कर ही रहे हैं... कोई किसी को देशभक्ति का सर्टिफिकेट दे रहा है कोई किसी को देशद्रोही बता रहा है.... बिना अपने गिरेबां में झांके की उसने अब तक क्या किया अपने देश के नाम पर ... सिवाय लफ्फाजी करने के..
और इस देश में पोजिटिव भी बहुत कुछ है... कभी उनकी बात भी करें .... अतीत के सुनहरे ख्यालों में खोने के अलावा
क्या करूँ सिथिलेश दुबे जी...दिक्कत तो यही है कि यहाँ सच बोलने वाले और बेझिझक अपना मत रखने वालो को ही देखने वाला समझा जाता है। भई मिथिलेश जी अगर दो आँखों के होते हुए भी अन्धे बने रहोगे तो मैं तो आपको अन्धा ही बोलूँगा। भई बुराई को देखकर चुप रहने वाला अन्धा ही होगा ना। मैं तो अपने मुँह से मानता हूँ कि मैं कोई तोप नहीं चला रहा मानवता और देश के लिये लेकिन अगर किसी को नेक सलाह दे रहा हूँ तो आपके पेट में दर्द क्यों हो रहा है।
और भई मैंने सबको तो अन्धा नहीं कहा और ना ही खुद को सबसे ज़्यादा देखने वाला।
ओह समझ गया....चलो आप ही देश को महान बनाने के नुस्खे बता हो। हाँ....बिना किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हुये ज़वास दीजियेगा।
दूबे जी और अमृत तुम दोनों अपनी आपसी लङाई कब ख़त्म करने वाले हो?आप लोग एक दूसरे को जवाब देते देते मुद्दे से ही भटक जाते है।
भई शबनम जी ये तो विचारों का माध्यम है। यहाँ विचारों में मतभेद तो होगा ही। अब बेहतर होगा कि दुबे जी है ज़वाब दें।
@ अमृत पाल सिंह जी
पहली बात तो ये मैं आपको बताना चाहूंगा कि मैंने महान बताने के नुक्से बताने की बात नहीं की है। मैंने ये जरुर जानना चाहा था कि जिस भारत को शबनम जी, ने लेकर सवाल उठाया है उसके सकारत्मक पहलुं को भी सामने रखें और भारत ने पूरे दुनियाँ को क्या दिया है और उसकी अच्छाई क्या-क्या है। लेकिन कोई बात नहीं , जब आप मुझसे जानना चाहते है तो मैं आपको जवाब तो यहीं दे देता लेकिन जवाब बाहुत बड़ा हो जायेगा इसलिए जल्द ही आपको इससे जुड़ी पोस्ट मिलेंगी मेरे ब्लोग पर माफी चाहूँगा बस कुछ दिंनो का इन्तजार कारिये।
@बहन शबनम
और बहन शबनम आप बेफिक्र रहिए बस विचारों के मतभेद हैं और कुछ नहीं। शबनम जी उम्मीद करता हूँ कि मैंने आपको बहन कहा तो इससे आपको कोई एतराज नहीं होगा।
जानता हूँ मिथिलेश जी कि आप बर मामले में तर्क देने के एक्सपर्ट हैं।
शबनम जी,
सबसे पहले मै आपका आभारी हूं कि आपने मेरे लिखे पर अपनी राय दी.......आपने अच्छा लिखा है और मैं आशा करता हूं कि भविष्य में भी आप ऐसा ही लिखा करेंगी ।
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