दो कंधे...

दो नाज़ुक मासूम कंधे
बोझ उठाये फिरते है...
किसी की उम्मीदें
किसी के सपने
पूरा करते वो कंधे...

वो झुकते है
वो थकते है...
ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबे कंधे...

बनते है किसी का सहारा
किसी का दिलासा वो कंधे...

सूरज से तपते कभी
बारिश से भीगते कंधे
दर्द सहते
टूटते जुङते...

दो नाज़ुक मासूम कंधे....