अपने दुख दर्दों से परेशान हूँ
देखके दुनिया का तमाशा हैरान हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
मंहगाई की मार झेल रहा हूँ
ज़िन्दगी को किसी तरह ढकेल रहा हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
घर से बाहर निकल मैं डर रहा हूँ
अपने जान माल की चिन्ता मैं कर रहा हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
ट्रैफिक से भरी सङके देख रहा हूँ
“नैनो लूंगा अपनी” फिर भी ये फेक रहा हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
अस्तित्व देश के अन्दर ही खोए जा रहा हूँ
भाषाओं की लङाई में मौन रोए जा रहा हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
“आम” बनके इस दुनिया में आया हूँ
“ख़ास” बनने की आस लिए ही जिए जा रहा हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
7 टिप्पणियाँ:
“आम” बनके इस दुनिया में आया हूँ
“ख़ास” बनने की आस लिए ही जिए जा रहा हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ ।।।
बस-बस पहचान ही लिया । खास बनने की चाहत तो हर किसी की होती है, फिर चाहे वह आम इन्सान ही क्यों ना हो। रचना अच्छी बन पड़ी है । बधाई
अपने दुख दर्दों से परेशान हूँ
देखके दुनिया का तमाशा हैरान हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
pahli pankti ne hi man moh liya.....
bahut hi khoobsoorti se likha hai....
hats off to u shabnam....
आम इन्सान दिख गया!! मेरे सिवा और भी हैं...सुन्दर अभिव्यक्ति!
अपने दुख दर्दों से परेशान हूँ
देखके दुनिया का तमाशा हैरान हूँ
मुझे पहचान लो दोस्तों
मैं एक आम इन्सान हूँ
वाह वाह बहुत खूब बधाई
खूबसूरत।
behtareen
behatrin va khoobsurat rachna
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