अलग अलग

मज़हबों में छिपने लगी है इंसानियत

अब तुम अलग अब हम अलग

इस मुल्क में फैली एक अजीब सी दहशत

हर खून अलग हर सांस अलग....


क्या खूब लगती है वो बात

एक ही ईश्वर की है सब औलाद

फिर क्यूँ जब असलियत दिखती है

मेरा खुदा अलग तेरा भगवान अलग....


रास्ते तो एक ही बने थे पहले

पर मंज़िलें बंटती रही

कोई मंदिर कोई मस्जिद कोई गुरुद्वारा चला

हुई आत्मा अलग हुए परमात्मा अलग...


जीते तो है एक ही ज़मीन पर दोनों

क्यूँ जब मर जाते है तब

कोई जलता है कोई दफ्ऩ होता है

जाने कहाँ जाते है दोनों अलग अलग....???