काश

आज अपनी यादों को ताज़ा करने बैठी तो स्कूल की एक मैगज़ीन सामने आई..उसमें एक कविता लिखी थी “काश”...
उसको आप सब के साथ शेयर कर रही हूँ..इसमें आपको मेरा बचपना, एक छोटे बच्चे की चिन्ता और जन्म लेती कुछ उम्मीदें भी नज़र आएंगी...

काश मैं एक नई दुनिया बसा पाती
जो कमी है इस जहाँ में
उसको दूर कर पाती,
करप्शन और ग़रीबी को मैं हटाती,
दुख तक़लीफ दूर करके खुशियाँ फैलाती,
जो बिछङ गए है अपनों से,
उन्हें फिर पास ले आती
भटके हुओ को सही राह दिखलाती
सबके दिलों में आपसी नफ़रत को मिटाती
प्रेम-अनुराग के दिये हर जगह जलाती
कुछ न बनके भी कुछ ख़ास बनके मैं दिखाती
काश मैं एक नई दुनिया बसा पाती...

12 टिप्पणियाँ:

काश मैं एक नई दुनिया बसा पाती...
काश ---------------------------

 

बहुत खूब ।

 

Shabnam........again......... a very gud creation...... sach mein! main tumhari lekhnee ka fan ho gaya hoon........

 

mehfooz ji...abi abi to sikhna shuru kia ha...aap logo se bohot kuch sikhna baki ha abi...hosla-afzayi k liye shukriya

 

काश!! ऐसा हो पाता...सुन्दर स्वपन!!

 

firstly first swagat ...bahut bahut swagat hai aapki sundar post ke liye...bas uhi chalte jaeye kafila aapke sath sath banta chalega mere blog par bhi apni pratikirya dai...hey aapka blog bahut sundar hai....main kaise ismain naye templet laga sakta hu....mail me plz my mail is vish.noreply@gmail.com

 

zarur aap ek nayi duniya basa payegi ......lage rahiye.......

 

एक पाक दिल की मासूम सी ख्वाहिश....और कुछ ख़ास तो आप बन ही गयी हैं....:)

 

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