फेसबुक, एसएमएस, पिज़्जा पीढ़ी और अन्ना का आंदोलन


एयरकंडीशन्ड सिनेमाघर की सीटों पर बैठकर 'रंग दे बसंती' फिल्म देख चुकी इस पीढ़ूी ने शायद ही सोचा होगा कि किसी दिन उसे भी इस फिल्म की तर्ज पर देशप्रेम दिखाने का मौका मिलेगा. उसे भी मौका मिलेगा कि वह देश की सड़कों पर किसी एक मुद्दे पर मिलकर ज़ोरदार प्रदर्शन करेगी. ये इस पीढ़ि का सौभाग्य है या फिर दुर्भाग्य कि इसे भी ठीक उसी तरह हाथों में बैनर और कैंडिल लिए इंडिया गेट पर जमा होना पड़ा जैसा कि फिल्म में दिखाया गया था.

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे और उनकी टीम द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन को सबसे ज्यादा समर्थन देश के युवाओं का मिल रहा है. अपने स्कूल, कॉलेज और ऑफिसों को छोड़कर हमारे युवा देश के अलग अलग हिस्सों में भ्रष्टाचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. सबसे ख़ास बात है इनके प्रदर्शन का तरीका. नए नारे, रोचक तस्वीरों और संदेशों वाले बैनर, टी-शर्ट और टोपी पर आंदोलन के समर्थन में की गई कलाकारी और ढपली बजाकर गाने गाते हुए पूरे जोश के साथ अपना विरोध जताना.. इन सबने भ्रष्टाचार के विरूद्ध किए जा रहे इस आंदोलन में जान डाल दी है.

ध्यान रहे ये वो युवापीढ़ि है जो फेसबुकिंग और मैसेजिंग के ताने सुनती है, ब्रांडेड कपड़े खरीदने, पिज्जा खाने और पार्टी करने पर बड़ो की आंखों की किरकिरी बन जाती है. लेकिन इस पीढ़ि पर उंगली उठाने वालों को ये बात समझ लेनी चाहिए कि युवाओं का ये अपना अंदाज़ है, उन्हें अपनी धुन में रहना पसंद ज़रूर है लेकिन इन सबके बावजूद उन्हें पता है कि इस देश का भविष्य उन्हीं के कंधो पर टिका हुआ है. युवावर्ग अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी समझता है औऱ निभा रहा है. एक और खास बात ये है कि माना जाता है कि युवाओं का रवैया बेहद ज़िद्दी और बिगड़ैल किस्म का होता है, वो अपसे से बड़ों की बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं लेकिन अन्ना के नेतृत्व में चलाए जा रहे इस आंदोलन में हर स्तर पर युवाओं की भागीदारी ने इस बात को भी गलत साबित कर दिया है. युवाओं ने इस आंदोलन को जितनी गंभीरतापूर्वक लिया है और इस मामले में जितना धैर्य बरता वो काबिल-ए-तारीफ है.

हां, उसका अंदाज़ कुछ अलग ज़रूर है. जैसे वो अपने दोस्तों और अपने सर्कल के लोगों को इस आंदोलन से ज़ुड़ने की अपील फेसबुक और एसएमएस से करता है, विरोध प्रदर्शन में जहां जमकर नारे लगाता है वहीं अपने स्मार्टफोन और सोशल नेटवर्किंग की मदद से प्रदर्शन की तस्वीरे लाइव अपलोड करता है, अपनी टी-शर्ट पर मार्कर से तिरंगा बनाता है और संदेश लिखता है, जब थोड़ा थक जाता है तो पेप्सी और कोक पूीकर अपनी प्यास बुझाता है और फिर वापस अपनी आवाज़ बुलंद कर नारे लगाता है.

हमारे युवाओं का अंदाज़ बेशक अलग है लेकिन जज़्बा और नज़रिया वही जो किसी भी देशभक्त में होना चाहिए. इस आंदोलन का नतीजा भले ही कुछ निकले लेकिन युवाओं की इतने बड़े स्तर पर इसमें भागेदीरी, इसकी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.

अन्ना, आंदोलन और नारे


भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हज़ारे, उनकी टीम औऱ देशवासियों द्वारा किए जा रहे आंदोलन में कुछ इस तरह के नारे लगाए जा रहे हैं...

सरकार को निशाना बनाकर लगाए गए नारे :-

  • अब तो ये स्पष्ट है, केंद्र सरकार भ्रष्ट है।
  • मनमोहन सिंह जिसका ताऊ है, वो सरकार बिकऊ है।
  • सोनिया जिसकी मम्मी है, वो सरकार निकम्मी है।
  • सारी दुनिया यहां है, राहुल गांधी कहां है, ।
  • हू हा हू हा, कपिल सिब्बल चूहा।

आखिर पुलिसवाले भी भारतीय हैं, उनमें भी भावनाएं हैं, लेकिन ड्यूटी से मजबूर हैं, ऐसे पुलिस वालों को देखकर ये नारे लगाए जा रहे थे :-

  • ये अंदर की बात है, पुलिस हमारे साथ है।

इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अन्ना हज़ारे के लिए देश की जनता में अटूट श्रद्धा और विश्वास पैदा हो गया है जो इन नारों में झलक रहा है :-

  • ये अन्ना नहीं आंधी है, देश का दूसरा गांधी है।
  • अन्ना नहीं ये आंधी है, देश का दूसरा गांधी है।
  • हमारा नेता कैसा हो, अन्ना हज़ारे जैसा हो।
  • अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।

और आखिर में... भारत में होने वाले हर छोटे बड़े आंदोलन का नारे :-

  • वंदे मातरम !
  • भारत माता की जय !

अन्ना, आंदोलन और उम्मीद की किरण


अन्ना द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध चलाई जा रही मुहिम अब सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ ही नहीं रही, उसमें शामिल होकर देखिए, आपको महसूस होगा कि ये भारतीयों के अंदर सालों से कैद विभिन्न सरकारों और सिस्टम के खिलाफ गुस्सा, भड़ास और दुख का एक गुबार है, जो आंधी के रूप में बाहर निकल रहा है.

आंदोलनकर्ताओं को खुद नहीं पता कि ये आंदोलन कहां तक जाएगा और कितना बदलाव लाएगा, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष है कि सारा देश इसमें अपना समर्थन देने के लिए आगे आया है. दीपक चौरसिया भले ही विरोध प्रदर्शनों के बीच में घुसकर लोगों को पकड़ कर उनसे पूछ रहे हो कि लोकपाल बिल है क्या, और उनके न बता पाने पर स्टार न्यूज के दर्शकों को ये बता रहे हों कि विरोध कर रहे लोगों को ये तक नहीं पता कि लोकपाल क्या है, लेकिन सच ये है कि अब बात सिर्फ लोकपाल बिल की रह नहीं गई है, अब बात आ गई है देश की जनता कि सहनशक्ति की.

अन्ना ने लोगों को उम्मीद दी है, कि हां अब भी कुछ बदल सकता है, कुछ बेहतर हो सकता है. वरना अपनी ज़िंदगी को किसी तरह पटरी पर बनाए रखने की जद्दोजहद में लगे देश के लोगों को ये होश कि कहां था कि वाकई उनके साथ अन्याय हो रहा है, उनके अधिकार छिन रहे हैं. जिन्हें अपने साथ हो रहे सरकारी अन्याय का इल्म था भी, वह अक्सर कहते दिख जाते थे कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता. इस छोटे से वाक्य में लोगों की निराशा साफतौर पर झलकती हुई दिखती है. अन्ना की इस मुहिम के शुरू होने के बाद कुछ बदला हो या नहीं, लोगों का नज़रिया ज़रुर बदला है. बसों, मेट्रो, सड़को, घरों और ऑफिसों में लोगों को ये कहते देखा जा सकता है कि इस बार ज़रूर कुछ होगा, बदलाव आकर रहेगा.

लोकपाल बिल बने या न बने, भ्रष्टाचार मिटे या न मिटे, लेकिन देश की जनता के लिए अन्ना हज़ारे जो एक उम्मीद की किरण बनकर आए हैं. अन्ना और उनकी टीम ने लोगों के मन में जो जज़्बा और देश के लिए प्रेम की भावना जगाई है वो किसी भी लोकपाल बिल से बढ़कर है.

अन्ना अब केवल एक शख्सियत नहीं बल्कि एक प्रतीक बन चुके हैं अन्याय के खिलाफ क्रांति का. शायद इसीलिए हर प्रदर्शन में ये नारा गूंजता हुआ सुनाई दे रहा है मैं भी अन्ना तू भी अन्ना, अब तो सारा देश है अन्ना

क्या है आपकी अंतिम इच्छा?

अपनी मौत के बाद आप बेशक स्वर्ग या जन्नत जाना चाहते होंगे. हर अच्छा काम करते हुए आपको इस बात का ख्याल ज़रूर आता होगा कि अब आप मौत के बाद अपने लिए एक अच्छी ज़िंदगी का इंतज़ाम कर रहे हैं, लेकिन क्या कभी आपने इस तरह से सोचा है कि अपनी मौत से आप किसी के लिए स्वर्ग बन सकते हैं...जी हां, जो इंसान अधूरी ज़िंदगी जी रहे हैं अगर आपकी मौत उनके अधूरेपन को पूरा कर दे तो उनके लिए वो स्वर्ग ही होगा..

बहुत घुमा फिरा दिया आप सबको.. दरअसल, मैं बात कर रही हूं अंगदान(ऑर्गन डोनेशन) की. आपने सबने इसके बारे में सुना ज़रूर होगा और बेशक इसे सराहा भी होगा. शायद चाहते भी होंगे कि ऐसा कुछ करें, लेकिन कोई न कोई बात आपको रोक देती होगी. इस भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अपनी मौत के बारे में सोचने का वक्त भला मिलता ही किसको है. हमें तो चिंता रहती है अपने काम की, परिवार की और खुद अपनी..

लेकिन अगर आप वाकई कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिसे करके आप अपनी आख़री सांस लेते समय सुकून का अहसास कर सकें तो एक बार अंगदान करने के बारे में गंभीरता से सोचे ज़रूर...

चलिए मैं आपको इसकी प्रक्रिया बता देती हूं जो कि काफी आसान है.. अंगदान के लिए आपको खुदको रजिस्टर्ड कराना पड़ेगा, इसके लिए आपको इंटरनेट पर फॉर्म मिल जाएगा (http://orbo.org.in/form.htm) फॉर्म का प्रिंटआउट निकालकर, उस फॉर्म को भरिए, आप यदि अपने कुछ ही अंग दान करना चाहते हैं तो वो लिख दीजिए और अगर फुल बॉडी डोनेशन चाहते हैं तो वो भी संभव है. इसके साथ ही, उसमें एक स्पेशल विश का भी ऑप्शन रहता है. इस फॉर्म को भरकर उसमें दिए गए पते पर 5 रू. की टिकट लगाकर पोस्ट कर दें. 15-20 दिन के अंदर आपके पास एक कार्ड पहुंच जाएगा... उस कार्ड को आप हमेशा अपने पास वॉलेट या हैंड बैग में रखें क्योंकि कार्ड में आपकी अंतिम इच्छा लिखी हुई है. इसके साथ ही, अपने परिवार वालों, दोस्तों और कलीग्स को इस बात की जानकारी दें कि अगर आपकी मौत अचानक हो जाए तो वो कार्ड पर लिखे नंबर पर इसकी जानकारी दें. ताकि आपकी अंतिम इच्छा की जा सके.

अंगदान के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराना सिर्फ एक कोशिश है उन लोगों के अधूरेपन को भरने कि जिनके लिए ज़िंदगी हमसे थोड़ी ज्यादा मुश्किल और चुनौती भरी है. भले ही हम अपने जीते जी ऐसे लोगों के लिए कुछ कर न पाएं, लेकिन अगर ऐसा संभव है कि हम अपने मरने के बाद उनके काम आएं तो हमें ये कोशिश ज़रूर करनी चाहिए. इसलिए आप सबसे अपील है कि आप इस विषय पर एक बार ज़रूर सोचें और साथ ही, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अंग दान की जानकारी पहुंचाए. हो सके तो इस नोट को अपनी वॉल पर डालें. मेरे साथ एक कोशिश करें किसी की ज़िंदगी बेहतर बनाने की.

नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके आप भारत में अंग दान से संबंधित सभी जानकारिया विस्तार रूप से जान सकते हैं http://www.donateyourorgan.com/organdonation/understand/organdonationinindia.aspx

http://orbo.org.in/modified%20recipients1.htm

शबनम ख़ान