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प्रस्तुतकर्ता
शबनम खान
पर
11:28 am
प्यारी माँ,
तुम्हे देखा तो नहीं है, न ही तुम्हारी आवाज़ सुनी है, पर तुम्हारी धङकनों से सब समझती हूँ। माँ...आज तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ। मैं बहुत डरी हुई हूँ। माँ कल ही जब तुम्हारी धङकनो की रफ्तार बङी तो मुझे पता चला कि पङोस वाली गीता दीदी के साथ क्या हुआ। दीदी के चेहरे पर किसी ने तेजाब डाल दिया है न माँ...वो जल गई है न...मैंने महसूस किया था दीदी की माँ रो-रो कर कह रही थी “मेरी बेटी का क्या कसूर था...सिर्फ छेङखानी का विरोध ही तो किया था न उसने...उसकी इतनी बङी सजा़? क्या होगा अब मेरी बेटी का...???”...माँ, दीदी का क्या दोष था..?
माँ परसो मुझे चोट लग गई...जानती हूँ आपको भी काफी चोटे लगी है...पापा ने आपको क्यूँ मारा माँ? मुझे बहुत दर्द होता है...ऐसी चोटे मुझे अक्स़र लगती रहती है..माँ पापा से कहिये न कि उनकी हिंसा उनकी बेटी तक पहुँच रही है..मां..करुणा बुआ की आहट अब कब सुनाई देगी? हा माँ..आपकी धङकनों ने सब बता दिया।करुणा बुआ का स्कूल छुङवा कर उनकी शादी करवा दी न माँ..पर अभी तो वो छोटी है न माँ..अब वो खेलने कैसे जाएंगी माँ..?मैंने तो सोचा था उन्हीं से पढ़ना लिखना सीखूंगी।दादू ने बुआ की शादी इतनी जल्दी क्यूँ कर दी माँ..?
माँ उस दिन चाचा के गुस्से को आपकी धङकन से महसूस किया था।चाची अपने घर से क्या नहीं लायी जो चाचा उनको लाने को कह रहे थे माँ...चाचा चाची को वापस भेजने को भी तो कह रहे थे न..पर माँ,चाची तो अभी अभी ही आई है..मैं तो सोच रही थी चाची ही मुझे तैयार किया करेंगी।चाचा से कहो न माँ...कितना सामान तो लाई थी चाची..अब वो उन्हें घर न भेजे...
माँ आपको मेरी नन्ही आँखों को खुलते देखने का..मेरे छोटे गुलाबी हाथों को अपने हाथों में लेने का.. रोने की आवाज़ सुनने का बहुत इंतज़ार है न..मैं जानती हूँ आपको जानकर बहुत दुख होगा,पर माँ..मैं बहुत डर गई हूँ।माँ सारी बेटियों की ज़िन्दगी ऐसी क्यूँ होती है?आपकी दुनिया में आने के बाद मेरी हालत भी गीता दीदी,करूणा बुआ,चाची और आपकी तरह हो जाएगी न?माँ मुझपर रहम करो,मैं इस बेरहम दुनिया में नहीं जी पाऊंगी..इसलिए मेरी ये विनती सुन लो...माँ मुझे जन्म न दो...मार डालो...इससे पहले की मैं बारबार मरुँ...
आपकी अजन्मी बेटी
9 टिप्पणियाँ:
bahut hi marmik. peeda ko shabdon main youn bandha hai aapane ki mahsoos hoti hai padane wale ko. badhai.
मार्मिक!
संवेदनशील लेख, शुभकामनायें
वास्तविकता की करुण गाथा। मार्मिक पोस्ट।
महिला मुक्ति कार्यक्रम का इतना प्रभाव है।
कि जन्म से पहले ही मुक्ति का प्रस्ताव है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Shabnam...... main ab tumhara FAN ho gaya hoon,............... kitna acchcha likha hai....
m impressed.....
kitna sahi maarmik chitran kiya hai..........
Gud..........
Keep it up.........
Gr8 work done....
सत्य का यह निर्मल रूप बहुत चुभ रहा है। कहता है बदल दो इन रिवाजों को, लेकिन क्या आसान है यह।
BEHTAREEN
सच जो होता है वो बहुत कम ही लोग खुलकर लिखते हैं। आज इस बात की तारीफ़ नहीं करूँगा कि तुमने अच्छा लिखा या नहीं। लिखा तो है ही खूब.....साथ ही साथ एक कडवा सच्चाई को बयाँ किया है तुमने......और वो भी खुलकर। जात-पात, धर्म आदि से ऊपर उठकर तुमने सच में कुछ ऐसा लिखा है कि समाज में व्याप्त इस समस्या के प्रति तिरस्कार की भाव आ जाता है। तारीफ़ के काबिल हो तुम।
शब्दों का अदभुत प्रयोग,
सचमुच आँखें नाम हो गयी, इसी तरह लिखती रहें,
शुभकामना!
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