आज सुबह
जब पलकों की चादर
आंखों से हटी
कुछ अलग था नज़ारा,
खिड़की से धूप नहीं
बह रही थी
ठंडी हवा,
दरवाज़े के पास
पड़ी थी कुछ
गीली-पीली पत्तियां,
टपक रही थी मचान से
आवाज़े महीन
और
दहलीज़ पर जमा था
मटमैला पानी,
कुछ नन्ही बूंदे
शीशे पर घर बनाए,
पड़ोस के पेड़ पर
बैठे थे
पर फरफराते,
कुछ पक्षी,
घास पर उतरी
हीरे सी बूंदें,
और अंत में
एक गीली मुस्कान
चेहरे पर
औऱ ज़हन में ख्याल
समेट लूं
इन निशानों को
जिन्हें छोड़ गई
कल रात बारिश..!
13 टिप्पणियाँ:
बहुत बढिया....सुन्दर.
खूबसूरत अलफाज़ों से सजी खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
मेरे ब्लॉग पर भी पधारें - संशयवादी विचारक
घास पर उतरी
हीरे सी बूंदें,
और अंत में
एक गीली मुस्कान
चेहरे पर
औऱ ज़हन में ख्याल
समेट लूं
इन निशानों को
जिन्हें छोड़ गई
कल रात बारिश..!
pura mann bheeg utha
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत खूबसूरत चित्रण ...
Bahut Sundar ..
और अंत में
एक गीली मुस्कान
चेहरे पर
औऱ ज़हन में ख्याल
समेट लूं
इन निशानों को
जिन्हें छोड़ गई
कल रात बारिश..!
very nice..!!
too good.
Markand Dave.
http://mktvfilms.blogspot.com
क्या बात,
बहुत सुंदर
जिन्हें छोड़ गई
कल रात बारिश..!
bahot pyari........
bhtrin khubsurat bhavnatmak lekhan ke liyen badhaai sabnam bahn .akhtar khan akela kota rajsthan
एक बेहेतरीन कविता लम्बे अरसे के बाद सुनी है...... क्या खूब लिखा है तुमने . मेरी और से ढेर सारी शुब्काम्नैये .इसी तरह से लिखती रहना . मेरी शुब्काम्नैये हमेशा तुम्हारे साथ है. [ Sid ]
एक बेहेतरीन कविता लम्बे अरसे के बाद सुनी है...... क्या खूब लिखा है तुमने . मेरी और से ढेर सारी शुब्काम्नैये .इसी तरह से लिखती रहना . मेरी शुब्काम्नैये हमेशा तुम्हारे साथ है.
एक बेहेतरीन कविता लम्बे अरसे के बाद सुनी है...... क्या खूब लिखा है तुमने . मेरी और से ढेर सारी शुब्काम्नैये .इसी तरह से लिखती रहना . मेरी शुब्काम्नैये हमेशा तुम्हारे साथ है.
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