लावण्या (पार्ट-3)
कॉफी का मग लिए वो बालकनी पर आ गई। शेड के नीचे लगी आरामकुर्सी पर एक उपन्यास लेकर बैठ गई। सामने बारिश की छम-छम और उंगलियां किताब के पेज पलट रहीं थीं, इन दोनों में तालमेल बिठाने की कोशिश में लगी लावण्या, कॉफी का मग होठों से लगाते ही कहीं और पहुंच गई। उसे इमरान का ऐसी हार्ड कॉफी पीना बिल्कुल पसंद नहीं था। कितनी बार तो उसने टोका था, इतनी हार्ड कॉफी पियोगे तो बीपी हाई हो जाएगा। फिर परेशान होते फिरोगे। बादल गरजने लगे। इतनी तेज़ कि, उसकी आवाज़ से लावण्या चौक गई और कॉफी मग से उपन्यास पर छलक गई। लावण्या फौरन खड़ी हो गई, इमरान वहीं छूट गया। उपन्यास के पन्नों पर कॉफी का दाग लग गया, ये दाग अब हटेगा नहीं, उसने सोचा।
अब उसे पढ़ने की बिल्कुल इच्छा नहीं हो रही थी। उसने कॉफी का मग साइड में रखा, आंखे बंद कीं और बारिश की आवाज़ में फिर एक बार सुकून तलाशने लगी। दो दिन और कैसे कटेंगे, वो लगातार सोच रही थी, उसे तो कितने दिन से अपने लिए वक्त की ज़रूरत थी न, और अब जब उसे ऑफिस से तीन दिन की छुट्टियां मिल गई हैं तो वो क्यों इतनी बेचैनी महसूस कर रही है? शायद वो अकेलापन महसूस कर रही है, उसे ढेर सारी बातें करनी हैं, हंसना है किसी को परेशान करना है, लेकिन किसे... क्यों न वो ऑफिस की अपनी कलीग और अपनी दोस्त संध्या को बुला ले और उसके साथ कुछ वक्त गुज़ारे। नहीं... वो संध्या से क्या बात करेगी? संध्या तो हमेशा उससे यही शिकायत करती रहती है कि वो काम की बात के अलावा उसके साथ कोई बात शेयर ही नहीं करती। तो फिर आज लावण्या उससे क्या बात करेगी। क्या आज उसके पास कुछ ऐसा है जो वो संध्या के साथ शेयर कर पाएगी? नहीं.. लावण्या को किसी की ज़रूरत नहीं। वो खुद से ही बातें किए जा रही थी। मौसम आज और दिनों से अधिक ठंडा था, शायद इसीलिए उसे वहीं नींद आ गई। शायद खुद से बातें करना ज़्यादा थका देता है।
(TO BE CONTINUE)
7 टिप्पणियाँ:
लावण्या के अगले हिस्सों का इंतज़ार रहेगा... इमरान को दृश्य से बाहर करने का तरीका बहुत अच्छा था :-) लिखते रहें
कहानी मे रोचकता बढती जा रही है।
aage ? ek cup coffe ke saath main bhi baithti hun
@rashmi ji - आगे आगे देखिए होता है क्या...हा हा हा...कॉफी एंजोए कीजिए....
@vandana ji - सच कहूं तो मेरी भी...मैं भी लावण्या को आप लोगों के साथ साथ ही जान रही हूं... ये पहले से लिखी कहानी नहीं है...
हार्ड कॉफी और इमरान का साथ बिल्कुल वैसा ही हैं, जैसे बारिश और लावण्या का साथ....कुछ भी कर लो..छूटता ही नहीं। और अब..इमरान के कैरेक्टर पर लगा हार्ड काफी पीने का दाग और किताब के पन्नों पर छलकी कॉफी का दाग भी नामालूम कब छूटेगा। अगली कड़ी के इंतज़ार में- बेनामी
लगता है लावण्या की जिंदगी में पहले जैसा रोमांच नहीं रहा। दिलचस्प कहानी। आगे की कड़ी का इंतजार है।
my blog- संशयवादी विचारक
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