एक पुरुष की अनकही

तुम,
मेरे अस्तित्व को
खुदके अस्तित्व पर ओढ़े...
समेटे अपनी इच्छाओ को
मेरी इच्छाओ में...
हिस्सा बन गयी हो
मेरे जीवन का...
सदा मुस्कुराती तुम,
कभी-कभी
इतराती भी हो,
तुम्हे मेरे साथ का
कुछ घमंड सा हो चला है...
पर सच कहूँ
ये घमंड तुम्हारा
मुझे मेरे
सम्पूर्ण होने का
एहसास
दिलाता है,
तुम पर अपना
मालिकाना हक
समझने लगा हूँ...
तुम मुझे मेरी
संपत्ति सी लगती हो,
चाहता हूँ,
मेरी पकड़ तुमपर
हमेशा बनी रहे,
तुम बनके मेरी रहो
जन्मों के लिए...
कुछ तो हो
जो केवल मेरा हो,
चाहे फिर मैं
किसी और का भी हो जाऊ...
जानता हूँ
तुम कुछ न कहोगी
मेरे साये में
ऐसे ही
जीती रहोगी,
न मैं रहूँ संग तो
खुद की नियति को रोओगी...
बस
तुम्हारा यही हाल
मैं देख नहीं पाउँगा...
इसलिए,
तुम्हे संग रखूँगा
लेकिन सुनो
तुम्हारे संग न रह पाउँगा...
(यह कविता मेरे बाबूजी 'राहुल' और गुरुमाता 'फौजिया रियाज़' को समर्पित है...)

21 टिप्पणियाँ:

बहुत ही सुंदर रचना...
क्या खुब लिखती है आप

 

vaah sbnm bhut khub achche andaaz men achche alfaazon ko achhce vidhaaron ke saath piroyaa he mubark ho bhn . khtar khan akela kota rasjthan

 

भावनाओं की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

 

बस
तुम्हारा यही हाल
मैं देख नहीं पाउँगा...
इसलिए,
तुम्हे संग रखूँगा
लेकिन सुनो
तुम्हारे संग न रह पाउँगा...

क्या भाव भरे हैं।

 

बहुत अच्छे!! कुछ मीठे-कड़वे यथार्थ को समझने की इमानदार कोशिश!!

 

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

 

शबनम खान जी आपकी कविता बहुत खूबसूरत है और कोई कविता अगर माँ को समर्पित हो तो उसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है |सलाम /नमस्ते

 

बहुत ही खूबसूरती से अपनी बात कह डाली और किसी को खबर भी न हुई !

बहुत सुन्दर अंदाज़ !

 

बहुत सुंदर रचना। अच्‍छे भाव। इस पोस्‍ट को पढकर एक फिल्‍म के गाने की दो लाईनें याद आ गईं, '' तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई।''

 

सुंदर कविता !और बहुत ही गहरे भाव! हार्दिक बधाई।

 

गहरे भाव लिए .. लाजावाब रचना ... स्त्री पुरुष दोनो तो पूरक हैं एक दूजे के ...

 

बस
तुम्हारा यही हाल
मैं देख नहीं पाउँगा...
इसलिए,
तुम्हे संग रखूँगा
लेकिन सुनो
तुम्हारे संग न रह पाउँगा...



kya kamaal ka ehsaas hai. sach main bahut hi khoob

 

bahut sunderta se ek purush ke bhaavo ko badi umdaaygi se likha hai. bahut khoob.

 

सुंदर रचना के लिए साधुवाद! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!

 

salam ailqum aap ki ye kavita bahut achchi lagi ummeed karta ho ki age bhi nai kavita phadhne ka maoka dagi aap ka bahad shukriya

 

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।
आपका जीवन
सुख, शान्ति
एवं समृद्धि से परिपूर्ण हो।

इस अवसर पर एक वृक्ष लगायें।
जन्मदिन को यादगार बनायें॥

पृथ्वी के शोभाधायक, मानवता के संरक्षक, पालक, पोषक एवं संवर्द्धक वृक्षों का जीवन आज संकटापन्न है। वृक्ष मानवता के लिये प्रकृति प्रदत्त एक अमूल्य उपहार हैं। कृपया अपने जन्मदिवस के शुभ अवसर पर एक वृक्ष लगाकर प्रकृति-संरक्षण के इस महायज्ञ में सहभागी बनें।

 

बेहद खूबसूरती से लिखा है ... A royal Salute to you dear!!

 

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