अक्षर गढ़ती
यह कलम
सुन पाती अगर
मन की आवाज़
तो और भी
संवेदनाये होती
इन पंक्तियों में
लेकिन
यह ठहरी निर्जीव
निर्भर
उंगलियों पर
समझती है यह केवल
स्पर्श की भाषा
(शबनम खान)
यह कलम
सुन पाती अगर
मन की आवाज़
तो और भी
संवेदनाये होती
इन पंक्तियों में
लेकिन
यह ठहरी निर्जीव
निर्भर
उंगलियों पर
समझती है यह केवल
स्पर्श की भाषा
5 टिप्पणियाँ:
शबनम खान जी
नमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
"निर्भर
उंगलियों पर
समझती है यह केवल
स्पर्श की भाषा"
bahut saargarbhit aur utkrisht kavita
aabhaar
shubh kamnayen
अच्छा लिखने लगी हो शबनम
जारी रखो....
शुभकामनाएं
कलम कभी मना नहीं करती
इसलिए तो कभी तलवार
कभी तलवार से भी तेज धार
सच बोलोगी तो
कभी नहीं तनिक भी उधार
कलम ही करती है सबसे प्यार
अविनाश मूर्ख है
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