वो कहीं जाना चाहती है
मैं कहीं...
वो अपनी चलाती है
मैं अपनी...
मेरी बातें उसे समझ नहीं आती
और मैं उसके तर्क नकार नहीं पाती...
हम दोनों की तकरार
इन दिनों बढती जा रही है
वो मुझे समझ नहीं पा रही
मैं उससे तंग आ चुकी हूँ..
लेकिन फिर भी
वो मेरा साथ छोड़ने को तैयार नहीं
और मैं भी मजबूर हूँ..
हम न चाहते हुए भी
एक दूसरे के साथ रह रहें है
कोशिशे कर रहें है
कि एक दूसरे को अनजान रखे
अपनी अपनी सोच से..
क्यूंकि उसकी चाहत
मैं पूरी नहीं कर सकती
और
मेरी चाहतो को
वो झूठा कहती है
वो मेरे अंदर की "मैं" है...
जो मुझसे दूर रहती है...
मैं कहीं...
वो अपनी चलाती है
मैं अपनी...
मेरी बातें उसे समझ नहीं आती
और मैं उसके तर्क नकार नहीं पाती...
हम दोनों की तकरार
इन दिनों बढती जा रही है
वो मुझे समझ नहीं पा रही
मैं उससे तंग आ चुकी हूँ..
लेकिन फिर भी
वो मेरा साथ छोड़ने को तैयार नहीं
और मैं भी मजबूर हूँ..
हम न चाहते हुए भी
एक दूसरे के साथ रह रहें है
कोशिशे कर रहें है
कि एक दूसरे को अनजान रखे
अपनी अपनी सोच से..
क्यूंकि उसकी चाहत
मैं पूरी नहीं कर सकती
और
मेरी चाहतो को
वो झूठा कहती है
वो मेरे अंदर की "मैं" है...
जो मुझसे दूर रहती है...
7 टिप्पणियाँ:
dwandw kaa bahut badhiya shabd-chitran
मेरी चाहतो को
वो झूठा कहती है
वो मेरे अंदर की "मैं" है...
जो मुझसे दूर रहती है...
...behtarin.
सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
भावनाओं का आलाप ...और बेबाकी से इस कदर प्रस्तुति... बहुत- बहुत स्नेह।
आपका अंदाजेबयां सचमुच लाजवाब है।
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हिन्दी के सर्वाधिक पढे जाने वाले ब्लॉग्।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति|
शबनम जी जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो ......
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