हर नए ‘डे’ के दुश्मन

वेलेंटाइन डे के साथ-साथ कुछ लोगों को अब विमेंस डे से भी दिक्कत होने लगी है। ठीक है होगी दिक्कततो तुम मत मनाओं भई...कौन ज़बरदस्ती कर रहा है लेकिन कुछ लोग अगर इस बहाने थोड़े खुश हो लेते हैं, सेलिब्रेट कर लेते हैं तो तुम्हारा क्या जा रहा है? उस पर से तुम लोगों के स्टूपिड रीज़न...कि विमेंस के लिए के लिए बस एक दिन? बाकी के 364 दिन? अरे यार...हद है...अब हम इंडीपेंडेंस डे भी तो मनाते है ही न...एक ही दिन सेलिव्रेट करते हैं न...साल के 365 दिन तो नहीं मनाते...? ईद भी एक दिन मनाते हैं...दिवाली...क्रिसमस... यहां तक कि अपना बर्थडे... तो फिर... उसे तो आप लोग बड़े शौक से मनाते हैं...मतलब कुछ लोगों का काम हो गया है कि जो पहले से चला आ रहा है चाहे रीति-रिवाज़ के नाम पर चाहे परंपरा के नाम पर उसे घसीटते जाओ लेकिन अगर आज की जेनरेशन कुछ नया करना चाह रही है, अपनी पसंद से कुछ सेलिब्रेट करना चाह रही है, तो उसमें उनके पीछे पड़ जाओ...

कुछ नहीं तो ये रीज़न...कि बाज़ारवाद की देन हैं ये सारे डे... एक बात बताओ क्या नहीं है बाज़ारवाद की की देन...और कहां नहीं है बाज़ारवाद... करवाचौथ... उसके खिलाफ तो किसी को कहते नहीं देखा... वहां बाज़ारवाद क्यों नहीं दिखता किसीको... ओह मैं भी क्या बात करने लगी... इस दिन के खिलाफ कैसे कुछ कहा जा सकता है, तथाकथित रिवाज़ो की पैकिंग में जो आता है ये दिन...और हां.. वर्ल्ड कप.. उसके लिए सब पागल हुए जा रहे हैं उसमें बाज़ारवाद को रोल क्रिकेट से ज्यादा है... वो क्यों नहीं दिखता...

और बेस्ट रीज़न तो ये दिया जाता है कि ये सब पश्चिम की देन है...वेस्टर्न कल्चर यहां पैर जमा रहा है... वाह... अरे पश्चिम की देन तो बहुत कुछ है... जो सूट-बूट पहनते हैं न... और माइक्रोवेव में खाना गर्म करके खाते हैं... वो हमारे देश का नहीं है जनाब... तो अगर ये भी पश्चिम से इंसपायर्ड है तो क्या फर्क पड़ता है... अब प्लीज़ ये मत कहना कि इससे हमारे कल्चर को खतरा हो सकता है... ख़तरा केवल उन चीज़ों को होता है जो काम की नहीं और अगर हमारे कल्चर में ऐसा कुछ है भी जो किसी काम का नहीं तो उसपर तो खतरा होना ही चाहिए... बाकी महान चीज़ों को कोई ख़तरा नहीं... तो फिक्र मत कीजिए वेस्टर्न कल्चर आपको और आपके कल्चर को खा नहीं जाएगा बल्कि और रिच बनाएगा...

तो इन नए नवेले डे से नफ़रत करने वालों... बात मानों और बेकार में बिगड़ैल यूथ, बढ़ता बाज़ारवाद और वेस्टर्न कल्चर के नाम पर बेवजह बेतुकी बातें करना बंद करो और खुले दिमाग से सोचो और बोलो... अगर ऐसा नहीं भी करने वाले तो कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आप इन सब चीज़ों को रोक तो सकते नहीं क्योंकि परिवर्तन को आजतक रोक भी कौन पाया है।

(शायद एक युवा यहीं सब सोचता होगा जब उसे, उसकी सोच और इच्छाओं, पसंद-नापसंद को बार-बार अनुभव के तराजू में तोलकर कम मापा जाता है)

9 टिप्पणियाँ:

सधे हुए शब्द!! गागर में सागर भरा है शबनम आपने!! बहुत सही कहा!! छोटे वाक्य में कहूं तो दिल खुश हो गया!! तेवर को सलाम!!

 

SHABNAM BAHAN
Aapse sahmat hun...
Kahte hayn upar wale ne hame dimag diya hay...to in sabhi log jo har baat me ulta sidha niyam lagate hayn..unhe apne dimag ka prayog karna chahiye...aapka post unhe madad karega.

 

achha aalekh aankhen kholne men saksham , mahila divas ki shubhkamna

 

HI SiS,
U Rock .....Every Tym U right Something ...Hum to sirf aapke lekhon k paathak (sahi word tha) ban k reh gye hai...
Saare samaaj ko bata diya kaisa hai aaj ka youth aur iski soch...

We should respect our (youngistan's) New creative mind and ideas.
One should really needs to be broad-minded & Accept new things positively
NIZAM KHAN

 

really have no words for urz compliments....bahut umdaaa...likha...hai aapne...bilkul nirbhik mahile ke manind...har alfaaz me sachai dikhti hai aapke har lekh me
once again i solute of u....keep going

ALEEM AZMI

 

बहुत सही!! कुछ लोग भले विरोध कर रहे हों लेकिन मीडिया का महिला दिवस के प्रति नजरिया ज़रूर बदला है. अखबारों ने अपने पजे बढाए हैं तो वेब मीडिया भी इस पर काफी कंटेंट दे रहा है. एक बात यह भी है विश्व महिला दिवस और बाकि डे के विरोध के एक से पैमाने स्वीकार्य नहीं हैं. जब हम बाकि दिनों के लिए एक दिन ही खर्चते हैं तो इसके एक दिन पे लोगों को ऐतराज क्यूँ हो रहा है? पढ़कर अच्छा लगा.

 

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