आज कॉलेज से वापस आते वक़्त अंधेरा होने लगा था..बस स्टॉप पर खङी बस का इंतज़ार करने लगी..इस वक़्त बसों में बङी भीङ होती है..पर...जाना तो पङता है..आज थकान भी बहुत थी सोच रही थी कैसे भी करके बस एक सीट का जुगाङ हो जाए...खङे होकर जाने की हिम्मत नहीं थी..सोच ही रही थी कि दूर से एक डीटीसी बस आते दिखी...पर समझ नहीं आ रहा था कि कौन से रूट की है..करीब आई तो देखा उसपर लिखा था “केवल महिलाएँ” बस का नं. था 307...
देखते ही दो दिन पहले के अख़बार की वो ख़बर याद आ गई जिसमें लिखा था डीटीसी बस छह रूट पर अपनी लेडीज़ स्पेशल बस चलाना शुरू कर रही है..बस फिर क्या था..मैं झट से चङ गई “अपनी” बस में...।
अन्दर का सीन भी मज़ेदार था..केवल 8-10 लेडीज़ बैठी थी..सबके चहरे खिले हुए थे..हँस-मुस्कुरा रही थी...और सङक पर बसों के इन्तेज़ार में खङे पुरुष यात्री बङी ललचाई नज़रों से अपने सामने से खाली जाती हमारी लेडीज़ स्पेशल को देख रहे थे कुछ जो चङने की कोशिश कर रहे थे कंडक्टर उन्हें फ़टकार लगाने से भी नहीं चूक रहा था “दिखाई नहीं देता ये केवल महिलाओं के लिए है..”।
मैं भी कुछ कम खुश नहीं थी जैसे नोबल पुरस्कार मिल गया हो..रोज़ बसों में सफ़र करने वाली मेरी तरह लेडीज़ को कितनी ही दिक्कतों का सामना करना पङता है..और छेङछाङ तो आम है..ऐसे में डीटीसी का यह कदम हमारे लिए एक खूबसूरत तोहफ़े से कम नही..पूरे रास्ते मन ही मन यही कहती रही “शुक्रिया डीटीसी”।
20 टिप्पणियाँ:
सरकारी तोहफ़े के लिए आपको बधाई हो....अब मज़े कीजिये...कल से केवल इसी बस में जाने....दूसरी बस में चढकर पुरूषो की सीट मत घेरना....हा हा हा ...मज़ाक कर रहा हूँ....वैसे लगता है शीला आंटी की यह तोहफ़ा तुम्हे बहुत पसंद आया...
बधाई जी , बहुत अच्छा हुआ, अब मजे से जाये मजे से आये, अगर पुरी बस किड्नेप हो गई तो????? कोन बचायेगा?
हमने तो सुना था कि बराबरी का नारा है..:) खैर, बधाई हो जी आपको. आराम से पहुँच गई आप.
बहुत अच्छा क़दम। शुक्रिया डी.टी.सी.।
पुरुष हुड़कचुल्लुओं की तरह देखते हैं जब पास से ऐसी बस मुंह चिढ़ाते हुए निकलती हैं...
वैसे करण जौहर जैसों को इस बस में बैठने की इजाज़त होती है या नहीं...
जय हिंद...
शबनम साहिबा,
अब तो सामान्य बसों से
'महिलाओं के लिये आरक्षित'
सीटें हटवाने का 'आन्दोलन' चलवाना चाहिये
(हा..हा..हा)
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सही कहा शाहिद जी....कॉमन बसें हटाकर पुरूष स्पेशल भी चलवानी चाहिए...सारा महिला पुरूष का किस्सा ही खत्म हो। इस लिंग भेद के चक्कर में बहुत बार "काफी जटिलता से मिली सीट" भी छोडनी पडती है। महिलाएं अपनी मासूमियत (दरअसल वो अबलापन जो उन्होंने अपने दिमाग में स्थाई रूप से बिठा लिया है। ) के बल पर कई बार अपना वार वहाँ चलाने से भी नहीं चूकती जहाँ सीटें आरक्षित नहीं होती। भई वाह...सब बराबर है...बराबरी का ही व्यवहार करो। खुद को कमज़ोर साबित करके आखिर क्या दिखाना चाहती हो......
जब तक हमारा समाज पूर्ण रूप से सभ्यता नही अपनाता .......... ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए ...... देरी से हुई पर चलो हुए तो ........ शुक्रिया डी. टी. सी. ....
बड़ी ख़ुशी की बात है !
बस इक बात का ध्यान रखना , किसी ने कहा है की फूलों को बचाने कोई माली नही आता .
लेकिन मर्दो के बिना फ़िर भी काम नही चल सकता? जी ड्राईवर ओर कंडेकटर तो पुरुष ही है ना....उसे भी उतारो नीचे:)
Shabnam jee
kitna sukun milta hay jab thake insan ko aaram mil jaaye .
Shukriya us UPARWALE ki jo hame tarah tarah se aaram pahuncha kar khushiyan deta hay.
Say thanks to ALLAH.
bahut khoob ..... chaliye ab to aap sabhi ko comments dhakka mukki vagairah se nijaat nili .... ab aap sabhi ek dum mast hokar safar ka maza loot sakti hai..... mubarak baad
aap ki inaayat hamare blogs par zara kam hone lagi hai .....meherbaani karke hume ignore mat kijiye
http://aleemazmi.blogspot.com/
सुन्दर यात्रा वृतांत
बहुत बहुत आभार .................
your hindi writing is very good. it reminded me of mahadevi verma.
... kuchh pal raahat ke milenge,badhaai !!!!!
nari suraksha ki taraf sarkar ka yeh kadam saraahniye hai. aapko sukoon mila khushi hui.
जितना सुन्दर ब्लॉग,
उससे अधिक खूबसूरत रचना!
शबनम को शुभकामनाएँ!
सालो पहले डीटीसी महिला स्पेशल चलाती थी....कुछ बसों में तो बीच में ग्रिल लगाकर एक तरफ महिलाओं और दुसरी तरफ पुरुषों के लिए सीटें रिर्जव होती थीं.......फिर वही कवायद...दुनिया गोल है.....चलो शरीफ पुरुषों को भी आराम. मिला...हा हा हा हा
मैं भी झूठ नहीं बोलता.......
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