..... वो लावण्या कितनी खुश थी, सबकी चहेती और सबको चाहने वाली। जो भी उससे एक बार मिलता उससे बिना प्रभावित हुए नहीं रहता। और अब?, लावण्या धीरे-धीरे अपने आज में वापस आने लगी। अब क्या वो खुश है? हां...बिल्कुल है। आखिर खुश क्यों नहीं होगी। उसे दुख ही क्या है भला। अपने आप से सवाल जवाब करती लावण्या का ध्यान फोन की घंटी ने अपनी तरफ खींच लिया। फोन कॉलेज की सबसे खास दोस्त ज़ैनब का था। कॉलेज के दिनों में ज़ैनब को सब लोग मिस सोशल वर्कर के नाम से पुकारते थे। किसी जूनियर का लाइब्रेरी कार्ड खो गया हो या किसी को नोट्स चाहिए हो, किसी की अंटैंडेंस बढ़ाने के लिए प्रोफेसर से सिफारिश करनी हो या किसी लड़के को अपने दिल की बात किसी लड़की से कहनी हो, ज़ैनब बेहिचक सबकी मदद करती थी। उसकी यही बात लावण्या को सबसे ज्यादा पसंद थी। कॉलेज खत्म होने के बाद दो-तीन बार मुलाकात हुई, फिर ज़ैनब के अब्बू का ट्रांसफर पुणे हो गया और वो परिवार समेत वहीं चली गई। अब कभी कभी फोन पर बात हो जाया करती है। वहां जाकर ज़ैनब ने अपने शौक यानि सोशल वर्क को अपने पेशा बना लिया और अब बुज़ुर्गों के लिए एक एनजीओ चलाती है। अगले महीने ही वह शादी करने जा रही है। यही बताने और निमंत्रण देने के लिए ज़ैनब ने आज लावण्या को फोन किया था। अपनी खुशी ज़ाहिर करने और शादी में शामिल होने की हामी भरने के बाद लावण्या ने फोन रख दिया। उसके बाद वो फिर खिड़की की तरफ बड़ गई। वो लड़की, जो सड़क पर कुछ देर पहले दिखाई दे रही थी, अब जा चुकी थी और बारिश कुछ और तेज़ हो गई थी। लेकिन न जाने क्यों अब लावण्या को उस खिड़की पर खड़ा होना अच्छा नहीं लग रहा था। क्या वह ज़ैनब की शादी की ख़बर सुनकर खुश नहीं थी? बेशक थी। फिर... फिर वो अचानक अजीब सी बेचैनी क्यों महसूस करने लगी थी? उसे सर में हल्का दर्द महसूस होने लगा था। शायद उसे एक कप कॉफी की ज़रूरत है, उसने खुद से कहा और किचन की तरफ बढ़ गई।
(TO BE CONTINUED)
6 टिप्पणियाँ:
ये तो नाइंसाफी है पाठकों के साथ। इतनी इंटरेस्टिंग कहानी, और वो भी सिर्फ इतनी।
प्लीज, पाठकों की भावनाओं का ध्यान रखें।
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गुडिया रानी हुई सयानी...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
आपने पार्ट वन पढ़ा न...मेक श्योर...तभी समझ आएगी कहानी...इससे पहले की पोस्ट पहला भाग है...
वैसे शुक्रिया पढ़ने के लिए...कहानी धीरे धीरे आगे बढ़ेगी...
लावण्या की बैचेनी के पीछे का कारण तो शायद खुद लावण्या भी नहीं जानती, या हो सकता है वो जानती भी हो और जानबूझकर अनजान बन रही हो। मैं जानता था कि लावण्या और बारिश का कुछ तो रिश्ता है। तेज होती बारिश की बूंदे, लावण्या के मन की बैचेनी को भी बढ़ा रही हैं...अगली कड़ी का इंतज़ार....
kahani me rochakta hai
अरे थोडा ज्यादा लिखा करिये…………मन नही भरता।
@vandana ji - खास आपके लिए...अगली बार लावण्या के साथ कुछ और वक्त गुज़ारेंगे....
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