वो हंसकर बात करे
तो ज़िंदादिल
और मेरा खिलखिलाना
सबूत हो गया
मेरे गिरे चरित्र का....
वो घर आए
देर से
तो मेहनती
मेरा सांझ ढले
खिड़की से झांकना
सबूत हो गया
मेरे गिरे चरित्र का....
उसका टकटकी लगाए देखना
उसका प्रेम
और
मेरा नज़र उठाना
सबूत हो गया
मेरे गिरे चरित्र का....
11 टिप्पणियाँ:
jo aise saboot pesh kare ... unhen unki girebaan mein dikhana zaruri hota hai
बोलती बंद!! बहुत अच्छे!!
सही बात है
क्या आपने अपने ब्लॉग में "LinkWithin" विजेट लगाया ?
काहे लड़कों से लफरा मोल लेती हो... :P
पैनी नजर, धारदार लेखनी, बेहतरीन अंदाज.....मैं नहीं जानता अभी आप क्या कर रही हैं...लेकिन प्रोफाइल में आपने लिखा है, कि पत्रकार बनना चाहती हैं.... सच तो ये है, कि आप सही मायनों में एक पत्रकार हैं.... तथाकथित पत्रकारों की भीड़ से अलग....
agreed...
nice
I LIKE ME.
acchi rachna..
ise kehte h achook astra
gud
badi serious ho gayi ho mohtarma
vaise kataksh behtareen kiya hai
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