‘ईमानदारी’ परेशान है...

(कुछ दिन पहले राजकिशोर जी का एक लेख पढ़ा था..उनकी शैली ने मुझे बहुत प्रभाव किया...उसी शैली में कुछ लिखने का प्रयास किया है.....)

सङक पर चलते हुए ये महसूस हुआ कि पास की झाङियों में कोई है...कोई है जो छुपा हुआ है।हिम्मत करके मैं वहाँ गई तो देखा कोई डरा हुआ सा प्राणी बङी दयनीय हालत में वहाँ छिपा हुआ है।

पास जा कर मैने पूछा तुम कौन हो?उस जीव ने काँपती आवाज़ में कहाँ ईमानदारी।इतना कहकर उसने सुबकना शुरू कर दिया।मैने उसे चुप कराया और उसे अपने साथ सङक पर लेकर चल पङी।बातचीत का दौर भी चल पङा।

मैने पूछा ईमानदारी तुम इतनी डरी सहमी क्यूँ हो?छिप किससे रही थी?उसने दबी जुबां में जवाब दिया, अपने दुश्मनों से छुप रही हूँ,मुझे जान का खतरा है।

दुश्मन…???” मैंने लगभग चौंकते हुए कहा।फिर थोङा सामान्य होके बोला...अरे तुम्हारा कौन दुश्मन हो सकता है..आम इन्सान हो या नेता तुम्हारे गुणगान तो हर कोई करता है...बचपन से ही हमें तुम्हारा हाथ थामकर चलने की सीख दी जाती है..अपने नैतिक मूल्यों की लिस्ट में तो तुम्हें हम सबसे उँचा स्थान देते है..।

इस पर ईमानदारी भङक गई।गुस्से में बोली,रहने दो,छोङो..तुम इन्सान दोगले हो..कहते कुछ हो करते करते कुछ हो....आज मेरे सामने मेरे कई सारे दुश्मन आके खङे हो गए है...भ्रष्टाचार, झूठ, बेईमानी, लोभ-लालच....ये सब मेरे खून के प्यासे हो गए है...मेरा जीना मुहाल कर दिया है इन सबने...इतना कहकर ईमानदारी फिर सिसकने लगी।

मैने कंधे पर हाथ रखकर दिलासा दिया,फिर हिम्मत बंधाने के उद्देश्य से कहा,ईमानदारी,हिम्मत मत हारो,तुम तो एक शाश्वत सत्य हो। इस पर ईमानदारी ने एक कटीली मुस्कान दी और कहा, जनाब आप खुद तो मुझे अपनाने से डरते हो, फिर कैसे मेरे सुनहरे भविष्य की कल्पना कर सकते हो..?”

मेरा सर शर्म से
झुक गया..मुझे निराश देख
ईमानदारी मुझसे बोली.. फिक्र मत करो,समय के साथ जैसे हर चीज़ बदलती है..मैं भी सोच रही हूँ अपने स्वरूप में थोङा परिवर्तन लाउँ ताकि फिर तुम्हारी पहुँच में आ पाउँ।

इतना कहकर ईमानदारी जाकर फिर झाङियों में छिप गई और मैं तेज़ कदमों से चल आगे बढ़ गई..।

5 टिप्पणियाँ:

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

 

bhaskar ji kabi to galti nikala kijiye...kuch sudhar karne ki salah dijiye...aise main kaise improve karungi....

 

अच्छी चीजों में ग़लती की गुंजाईश ही नहीं होती। जो अच्छा है उसे अच्छा ही कहा जायेगा। और तरीका किसी का भी हो सोच तो तुम्हारी अपनी ही है। खूबसूरत है।

 

शबनम साहिबा,
ईमानदारी के साथ आपकी मुलाकात असरदार है
वैसे
नस्र से बेहतर नज्म में लिख लेती हैं आप.
कोशिश करो, नज्म में और निखार आ सके
आप बहुत आगे जा सक्रती हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

 

शबनम.... तुम्हारे लेखन में परिपक्वता देख कर बहुत अच्छा लग रहा है..... बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है.....

 

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