जो दिल कहता है मेरा
वो बात मुझे सबसे कहने दो
इन्सान की औलाद हूँ मैं
मुझे इन्सान ही रहने दो
न बाँटो मुझे किसी धर्म में
न किसी दायरे में रहने को कहो
इस पिंजरे से निकलना चाहती हूँ मैं
मुझे उस आसमान का हिस्सा बनने दो
किसी रिश्ते की आड़ में
क्यूँ बिताऊँ मैं अपनी ज़िन्दगी
नहीं चाहिये बेटी, बहन, बीवी और माँ का दर्जा
मुझे ज़िन्दगी को अपने ढंग से जीने दो
अपनी इज्जत के नाम पर मुझपर
हुकूमत चलाना अब छोड दो
मेरे सीने पर धङकता एक दिल भी है
उन धङकनो को मेरी तुम बक्श दो
जो दिल कहता है मेरा
वो बात मुझे सबसे कहने दो
इन्सान की औलाद हूँ मैं
मुझे इन्सान ही रहने दो....