सुबह सवेरे आखें खुले जब,
दिखती है मेरी माँ परेशान,
घर से बाहर जब निकलूं तब,
सामने वाली आंटी परेशान.....
रिक्शे वाले को कहा बस स्टाप चलो,
कितना पैसा मांगू ये सोचके वो परेशान,
बस के अन्दर देखा मैंने,
सीट न मिलने पर एक लड़की परेशान....
दोस्तों से मिली कॉलेज में जब,
पिछला क्या पढाया था याद न होने पर वो परेशान,
टीचर जब आए क्लास में,
कम बच्चे देखके वो परेशान.....
मन में अब सिर्फ़ यही बात आती है,
लगता है आज हर इंसान हैं परेशान,
रोटी-कपड़ा-मकान है भी तो क्या,
कुछ न कुछ कमी ढूंढ कर हो ही जाते है परेशान....
परेशान रहना हमारी आदत बन गई है,
परेशान रहना हमारी फितरत बन चुकी है,
तो अब कोई भी परेशान दिखे तो,
ये न पूछना की "तुम क्यूँ हो परेशान...?"
(दोस्तों आज कल तनाव में रहना काफ़ी आम बात हो गई है...जरा सी बात को लेकर हम कितना परेशान हो जाते है....मेरी ये कविता उन्ही लोगोको समर्पित है जो ज़रूरत से जादा परेशान रहते है और अपनी इस आदत की वज़ह से अपना आज खो रहे है....खुश रहिये जनाब...वरना...वो क्या कहा था शाहरुख़ खान ने....हाँ..."कल हो न हो"......)
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4 वर्ष पहले
2 टिप्पणियाँ:
मुझसे ज़्यादा खुशी शायद किसी को नहीं होगी यह देखकर कि तुम यथार्थ को कितनी अच्छी तरह शब्दों में पिरोने लगी हो। ऐसे ही अपनी कल़म से ख़ूबसूरत पंक्तियाँ लिखती रहो। आज कोई ग़लती नहीं निकाल पा रहा हूँ मैं। यह बहुत अच्छी बात है। भविष्य के लिये शुभकामनायें।
BAHUT HI SUNDER RACHNA
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