हम तुम मिलकर आओ
एक ऐसा एहसास जगाए
रिश्तों की परिभाषा से दूर
बेनाम एक रिश्ता जी जाए....
जिसमें “मै” भी साँसे ले
और “तुम” भी जगह पाए
मिसाल भले न बने हम
पर सुकून ज़िन्दगी में आए....
न तुम मुझ पर हक़ जताओ
न हम तुमसे कुछ चाहे
हम कोई सौदागर तो नहीं
जो लेन देन पर टिक जाए....
आओ एक ऐसी छाया तलाशे
छाँव में जिसकी दो पल बिताए
अतीत की परछाई न हो जहाँ
कोहरे भविष्य के न घेर पाएँ....
रिश्तों के पुराने साँचे को
हम तुम मिलकर गलाएँ
तपिश कुछ ऐसी दे फिर से
नया आकार वो पा जाएँ....
हम तुम मिलकर आओ
एक ऐसा एहसास जगाए
रिश्तों की परिभाषा से दूर
बेनाम एक रिश्ता जी जाए....
14 टिप्पणियाँ:
वाह्………………बेहद खूबसूरत भाव संजोये हैं।
Sach ko bayan karti kavita, Badhayi.
wahhh wahhh waise apki kavita main uttaradhunikta ki jhalak dekhne ko milti hai ....!!!
Jai Ho Mangalmay Ho
kya baat hain...bahut khub...
is rishte ko kuch naam na dena...ye ahesason ka rishta hai...
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद
मिसाल भले न बने हम
पर सुकून ज़िन्दगी में आए....
...रिश्तों की परिभाषा से दूर
बेनाम एक रिश्ता जी जाए.
ये रचना....
सामाजिक संबंधों में...
सामंजस्य के लिए...
एक महत्वपूर्ण संदेश बन गई है.
हम कोई सौदागर तो नहीं
जो लेन देन पर टिक जाए....
सुन्दर एहसास ..
गुलज़ार याद आ रहे हैं ..." हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू ..."
अरे! वाह! बहुत दिनों के बाद आयीं....? कहाँ थीं भाई? और आई तो इतनी धांसू रचना लेकर.... बहुत सुंदर कविता है....
शबनम इस ग्रेट...
बहुत अच्छे!!
so beautiful!
its realy nice
वाह बहुत खूब लिखा आपने
very nice
बहुत खुब....माशाल्लाह......
==================
"हमारा हिन्दुस्तान"
"इस्लाम और कुरआन"
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
एक टिप्पणी भेजें