एक "प्रयास"


कौन कहता है आसमाँ में छेद नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों।इन्हीं पंक्तियों को यथार्थ में बदलने की कोशिश में लगा है दिल्ली का प्रयास बाल निरीक्षण गृह।इस बालगृह में 18 वर्ष से कम उम्र के उन लङकों को रखा जाता है जिन पर जुवेनाईल एक्ट के अन्तर्गत आपराधिक मामले चल रहे होते है।यह बालगृह समाज कल्याण विभाग के अधीन प्रयाससंस्था द्वारा चलाया जा रहा है।

इस बालगृह में वे बच्चे है जिनपर छीनाछपटी,चोरी,बलात्कार,हत्या जैसे अपराधिक मामले चल रहे है पर विशेष बात ये है कि इन बच्चों को यहाँ कैदी के तौर पर नहीं रखा जाता।यहाँ के अधीक्षक भूपिन्दर कुमार का मानना है कि बाल अपराध का मूल कारण प्रतिकूल परिस्तिथियाँ है,कोई भी बच्चा जन्मजात अपराधी नहीं होता।वे कहते है, बच्चे गंगा की तरह पवित्र व शक्तिशाली होते है।जिस तरह गंगा को ज़मीन का साथ ज़रूरी है ठीक उसी तरह इन बच्चों के लिए हमारा साथ ज़रूर है।इसी सोच के साथ यहाँ आने वाले बच्चे के जीवन में सुधार लाने का पूरा प्रयास करते है।

प्रयास बाल संरक्षण गृह में बच्चों को उचित शिक्षा दी जाती है।साथ ही,यहाँ से निकलकर बच्चे आत्मनिर्भर हो सके उसके लिए व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाती है जिसमें बच्चों को सिलाई,कढ़ाई,अगरबत्ती मेकिंग, प्रिंटिंग,मेहंदी आदि की ट्रेनिंग शामिल है।इसके अलावा,बच्चों के स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखा जाता है।उन्हें योगा,व्यायाम और खेलकूद सिखाया जाता है और पौष्टिक खाना दिया जाता है।

यहाँ सभी बाल अपराधियों की समय समय पर मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ काउंसलिंग करते है ताकि बच्चों की मन:स्तिथि को गहराई से समझकर उनमें सुधार लाने का प्रयास किया जा सके।शुक्रवार को बच्चों को परिजनों से मिलने की इजाज़त भी दी जाती है।सभी धर्मों से सम्बन्धित त्यौहारों को यहाँ धूमधाम से मनाया जाता है।साथ ही,कुछ विशेष अवसरों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

यहाँ बच्चे अधीक्षक भूपेन्दर कुमार को भैया कहकर संबोधित करते है।जितेन्द्र (परिवर्तित नाम) को यहाँ पाँच महीने पहले लाया गया था उसपर छीनाछपटी के आरोप में कोर्ट में केस चल रहा है।शुरू शुरू में उसे यहाँ अजीब सा लगता था पर अब वह स्वयं को इस प्रयास परिवार का सदस्य मानता है।इन दिनों वह यहाँ सिलाई सीख रहा है।एक अन्य बच्चा राकेश (परिवर्तित नाम) कहता है कि ग़लत संगति में पङकर उसने चोरी की और पकङा गया।पिछले दो महीनें से वह यहाँ है।वह कभी स्कूल नहीं गया पर यहाँ पढ़ना लिखना सीख रहा है।

इसी तरह यहाँ कई बच्चे अपने अंधकारमय बचपन को उजले भविष्य में बदलने का प्रयास कर रहे है।इस सुधार गृह के अधीक्षक तथा अन्य कर्मचारियों को विश्वास है कि यहाँ से निकलकर ये बच्चे फिर मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे तथा अपने भविष्य को उज्जवल बनाएंगे।

6 टिप्पणियाँ:

आपका प्रयास और इन का प्रयास दोनों सराहनीय है प्रेरणास्पद है.

मनुष्य समाज का जो क़बीला ,जो जाति जो धर्म सत्ता में आ जाता है वह समाज की श्रेष्ठता के पैमाने अपनी श्रेष्ठता के आधार पर ही बना देता है [यह श्रेष्ठता होती भी है या नहीं यह अलग प्रश्न है] यानी सत्ता आये हुए की शक्ती ही व्यवस्था और कानून हो जाया करती है,


सशंकित होना क्या जायज़ नहीं कि क्या वास्तव में आज ऐसा हो रहा है !!

गर हो रहा है तो मुखर विरोध होना चाहिए.

ब्लॉग जगत में फैली हिन्दू-मुस्लिम घमासान पर पढ़िए

शमा ए हरम हो या दिया सोमनाथ का
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

 

अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

 

शबनम साहिबा,
जिस तरह आप विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर गहन चिन्तन पेश करती हैं, उससे एक बात साफ़ हो जाती है कि आप आने वाले समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में काफ़ी आगे तक जाने वाली हैं.

 

उम्दा पोस्ट... ऐसी जानकारी मुहैया करवाने के लिये शुक्रिया... लिखते रहिये..!!

 

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