दौर उलझनों का
सुलझता ही नहीं...
वक़्त की रफ़्तार
बढ़ती भी नहीं...
धुंध में लिपटी
ख्वाहिशें सभी...
ज़िन्दग़ी का सफ़र
काटे कटता नहीं...
चन्द रोज़ पहले
ख़ामोश जज़्बात हुए...
पर सूरत-ए-हाल
छिपता ही नहीं...
यादों के चराग़
आँखों में जले...
कोशिशें हुई तमाम
“शब” फ़िर भी रूठी रही...
14 टिप्पणियाँ:
खूबसूरत...............
बहुत मार्मिक कविता।
चन्द रोज़ पहले
ख़ामोश जज़्बात हुए...
पर सूरत-ए-हाल
छिपता ही नहीं...
सूरत-ए-हाल गर नहीं छिप रहे तो समझो जज़्बात खामोश नहीं हैं
बहुत सुन्दर भाव
बहुत उम्दा!
खूबसूरत नज़्म
very nice...
heart touching....
बहुत गहरे एहसास लिए सुन्दर नज़्म
dil ko chhoo kar nikli hai.... sundar!!
एक उम्दा रचना, एहसास लिए हुए... आभार...
बहुत गहरे एहसास लिए सुन्दर नज़्म
छोटा सा सवाल....
क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो?
अजी छोडिये..... खुश रहिये!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ | आपकी सच्चाई और निर्भीकता से काफी प्रभवित हुआ- एक शेर अर्ज़ है .... " ए दोस्त झूठ इस क़दर आम था दुनिया में,
तूने भी सच कहा तो फ़साना लगा मुझे "
आप अच्छा लिखती है.....और अपने आस पास पर घटित लिखती हैं बहुत कम लोगो को खुदा हुनर देता है....ऐसे ही लिखते रहिये........खुदा हाफिज़
कभी फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आईएगा...
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
bahut khub...bahut umda..
HMMMM.......ACHA HAI.......PAR SHAB AGAR MUSKURATI TO AUR ACHA HOTA
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