फोन पर मैसेज आया, “तुझे कभी आठ घंटों में प्यार हुआ है?” प्रिया समझ गई फैसल को फिर किसी से प्यार हो गया है। उसने जवाब भेजा, “नहीं...पर जानती हूं तुझे हुआ है।”
प्रिया का मन फिर काम में नहीं लगा। जैसे-तैसे खानापूर्ति करके वो ऑफिस से जल्दी निकल तो आई लेकिन इतनी जल्दी घर जाने का न ही उसका मन था और न ही आदत। काफी देर बस स्टॉप पर खड़े रहने के बाद प्रिया को एक खाली बस आते हुए दिखाई दी। हालांकि वो बस उसके घर की तरफ नहीं जा रही थी लेकिन प्रिया को लगा जैसे ये बस सिर्फ उसी के लिए आई है। प्रिया बस में चढ़ गई और खाली सीटों में से अपनी पसंदीदा बैक सीट पर खिड़की के पास बैठ गई। फैसल और प्रिया कॉलेज के दिनों में अक्सर इसी तरह खाली बसों में शहर के चक्कर लगाया करते थे। टिकट की कोई चिंता ही नहीं रहती थी क्योंकि बैग के कोने में स्टूडेंट बस पास पड़ा होता था।
फोन फिर वाइब्रेट हुआ। इस बार मैसेज संदीप का था। संदीप प्रिया का कलीग था। ऑफिस से दोनों अक्सर साथ आते-जाते थे। प्रिया जानती थी संदीप उसे पसंद करता है लेकिन प्रिया जानकर अनजान बने रहना ही ठीक समझती थी। फैसल के जाने के बा उसने अपने आपको एक दायरे में सीमित कर लिया था। मैसेज में संदीप ने लिखा था कि वो कहां है? प्रिया को याद आया कि जल्दबाज़ी में वो संदीप को बताकर आना भूल गई है। प्रिया ने जवाब दिया, “तबियत ठीक नहीं थी, जल्दी चली आई।” अब प्रिया ने फोन बैग में रख दिया। इस वक्त उसकाकिसी से बात करने का मन कर रहा था।
खिड़की से शाम की ठंडी हवा आ रही थी। प्रिया आंखे बंद कर सीट से टिक गई। प्रिया को अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। रह रह कर वह फैसल के “आठ घंटे के प्यार” के बारे में सोच रही थी। हालांकि वो काफी पहले अपने आपको समझा चुकी थी कि अब फैसल की ज़िंदगी में अब चाहे जो कुछ हो उसे फर्क नहीं पड़ेगा। अपने इस फैसले पर वो काफी खुश भी थी लेकिन फैसल का ये नया प्यार प्रिया को चैन नहीं लेने दे रहा था। प्रिया लगातार सोच रही थी कि फैसल उसके दो साल के प्यार को इस तरह कैसे भुला सकता है? क्या उसे एक बार भी प्रिया की याद नहीं आई? आठ घंटों का प्यार वाकई कोई प्यार हो सकता है?
सोचते सोचते प्रिया की आंखों से आंसू बह निकले। खुद को संभालते हुए वो अपने अपना रूमाल ढूंढने लगी। आदतन आज भी वो अपना रूमाल ऑफिस में ही भूल आई थी। प्रिया कुछ सोच ही रही थी कि इतने में किसीने एक सफेद रंग का जैंट्स रूमाल उसके आगे कर दिया। प्रिया ने नज़रे उठाकर देखा तो एक लड़का बेहद आकर्षक मुस्कान चेहरे पर लिए उसे देख रहा था। उसने रूमाल लेने से इनकार किया तो लड़ने ने “प्लीज़” कहकर उससे अपनी बात मनवा ली। प्रिया ने आंसू पोंछकर उसे “थैंक्स” करते हुए रूमाल वापस दे दिया। वो लड़का उसकी बगल वाली सीट पर ही बैठ गया। आधे घंटे की औपचारिक बातों के बाद दोनों ने एक दूसरे को अपना फोन नंबर दिया। लड़के का स्टॉप आया तो वो बाय करके चले गया। उसके जाते ही प्रिया ने तुरंत बैग से अपना फोन निकाला और फैसल को मैसेज किया, “आधे घंटे में प्यार हो सकता है क्या?”
(शबनम ख़ान)
20 टिप्पणियाँ:
सुंदर प्रस्तुति.....
इंडिया दर्पण की ओर से नववर्ष की शुभकामनाएँ।
वाह ………सटीक जवाब था।
बेहतरीन साज सज्जा और प्रभावित करने वाली रचना । ठिठक कर रह गया मैं
hahahaha....
प्यारी रचना
http://merijeevangatha.blogspot.com/
प्यार एक सुंदर कल्पना, भावनाओं के धागे से बंधे होते हुए भी कभी न कभी अनचाहे सवालों के घेरे में आ ही जाता है।
बहुत खूब।
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मुई दिल्ली की सर्दी..
... बुशरा अलवेरा की जुबानी।
बहुत ही प्रशंसनीय .....
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
कहानी के भाव बहुत ही सुंदर और कोमल पर रिस्क भरे हैं।
वाह वाह...
बहुत बढ़िया..........
:-)
too good.
सुंदर,कोमल प्रशंसनीय. शुभकामनायें
बहुत खूब ।
kya bataun man ko choo gai aapki ye rachna.
behtarin...!
:):)..अंदाज अच्छा है बयानगी का.
बहूत सुंदर लेख दिल भर आया..
bahut achha likha hai, man bhaya.
shubhkamnayen
bahut khub:)
बहुत खूब ।
it is too sweet story.
also i like it very much.
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