फ़ुरसत में बैठते ही
ख़्यालों में खो जाती हूँ
हथेली पर नाम लिखती हूँ तेरा
फिर बार बार उसे मिटाती हूँ....
डरती हूँ कोई देख न ले
हाँ मैं बहुत घबराती हूँ..
तुझे इस ज़माने से
हर लम्हा छुपाती हूँ
कभी नज़रे भी फ़ेरती हूँ तुझसे
छुपके फिर आँसू बहाती हूँ
तेरे निराश होने पर
रूठ के चले जाने पर
कुछ दूर तक पीछा करते हुए
मैं साथ चली आती हूँ..
फिर देखती हूँ
कुछ नज़रों को
जो मुझे घूरने लगती है
बस
वही मेरी हद है
वहीं मैं रुक जाती हूँ...
दिल रोता है मेरा
होठों से मुस्कुराती हूँ...
पलटती हूँ
उन नज़रों का सामना करती हूँ
उनके सामने जाकर
हँसती हूँ खिलखिलाती हूँ
उन्हें यकीन दिला के कुछ
वापस चली आती हूँ...
ढूढंती हूँ तनहाई फिर
किसी कोने में छिप जाती हूँ
इस दुनिया की नज़रों से
दूर चली जाती हूँ...
फिर से सिलसिला शुरू करती हूँ
तेरा नाम हथेली पर अपनी