पैदाइश के फौरन बाद
मैं खुद ब खुद हिस्सा हो गई
कुल आबादी के
आधे कहलाने वाले
एक संघर्षशील 'समुदाय' का,
कानों से गुज़रती
हर एक महीन से महीन आवाज़
ये अहसास दिलाती रही
तुझे कुछ सब्र रखना होगा
कुछ और सहना होगा
कुछ और लड़ना होगा..
और दिल से आती
नहीं! तुझे नहीं बदलना
बिगड़ा नज़रिया किसी बेअक़्ल
का
तुझे नहीं बनानी नई दुनिया
अपने ‘समुदाय’ विशेष के लिए
और न ही
तुझे करना है साबित
किसी को कुछ भी..
इस ज़िंदगी में इक काम बस
तुझे करना होगा
अपने लिए
हां, सिर्फ अपने लिए
एक छोटा सा काम
तुझे सीखना होगा
पैदाइश के उस पाठ को भूलना
जो तुझे सबसे पहले पढ़ाया गया
था
कि तू लड़की है
स्त्री है, औरत है
ज़िम्मेदारी है, कभी बोझ है कभी खुशी
है
कभी गुड़िया कभी देवी भी है..
तुझे सीखना होगा खुदको
सिर्फ और सिर्फ
एक इंसान समझना।
6 टिप्पणियाँ:
:-) बहुत बढ़िया...
सुन्दर प्रस्तुति
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behad umdaaaaaaa
अच्छा लिखा शबनम.
hm bhart ki kisi nari k
aur nhi apman shenge
lal kile ki prachiko se
ma tujhko salam khenge
pawan yagik
a/s
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