तुम्हारा फ़रमान.....
हुक़्म आया तुम चुप रहो
जो कहते है हम वो करो
बाहर ना जाना
चेहरे को छुपाना
घर है सुरक्षित
घर में रहो
बच्चे संभालों,शौहर की सुनों
कुर्सी मेज़ के जैसे अपने अपने काम है
तुम भी अपना काम करो
तुम्हें आज़ादी दी अगर
तुम्हें भेङियें न बख्शेंगे
तुम्हारी फिक्र है हमें
तुम चुप रहो
जो कहते है करो.....
कौन हो तुम
क्या चाहते हो
हमें चुप कराके क्या पाते हो
डरते हो शायद तभी डराते हो
काम न बने तो
हमे धमकाते हो
क्या लगता है तुम्हें
हम शान्त रहेंगे
उठाओं तुम ईंट ज़रा
पत्थर यहाँ से चलेंगे
बहुत की मनमानी अब सुधर भी जाओ
बेकार में यूँ बात न बङाओ
अब तक सहा है
अब न सहेंगे
न होंगे चुप अब
चुप तुम्हें करा देंगे...
(हाल ही में आए एक फ़तवे ने फिर कुछ लोगों की संकीर्ण सोच को सामने ला दिया है।मैंने उस मुफ्ती की बात को सुना....बहुत बुरा लगा साथ ही गुस्सा भी आया कि आज भी लोग ऐसी सोच रखते है।वो मुफ्ती और फ़तवा तो बस एक उदाहरण है यहाँ ऐसी सोच रखने वाले और भी बहुत है....हर धर्म में,हर समाज में।)
20 टिप्पणियाँ:
सहज स्फुरणा से आई हुई कविता । यह एहसास सभी को हो और इसे जाहिर भी किया जाए । बहुत खूब ।
बहुत खूब ।
शानदार शबनम!!
झापड़ बहुत ही सॉलिड था. लगाते रहो..!!
खूब
्शानदार लिखा है……………ऐसा करारा तमाचा तो लगना ही चाहिये।
achcha likha hai
बेहतरीन.........
aahhhhaaaa....kya baat hai, mazaa aa gaya shabnam, hilaa diyaa
"डरते हो शायद तभी डराते हो"
bas, sahi nas pakad li aapne..
हिम्मत और पूरी समझ से लिखी गई कविता.
बहुत सुन्दर
oho bhut khub... visualisation bilkul sateek.. lafz k kya kehne.. lage rho.. baat bebat fatwon n to dimag k dahi... kabu mn lane k zarurat h mullaon ko..
bhut khub shabnam....achha likhti aur sabsey achhi bat seedha likhta ho...
baap re baap......ganimat hai ki main aisaa nahin hoon...main to bach gayaa.....goli maaro aise logo ko....!!
achcha hai ...umda hai
डरते हो शायद तभी डराते हो
सारवान पंक्ति!
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
aapne bahut hi accha likha such main har line acchi hai
savi rachanayen dil ko jhankrit kar deti hai bahutkhub
डरते हो शायद तभी डराते हो
इन फतवे जारी करने वालों ने खुदा से आधा ही ज्ञान लिया है, जिस दिन पूरा ज्ञान पालेंगे अपने फतवे बंद करने के लिए फतवा निकाल लेंगे...
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