
अक़्सर अपने दोस्तों को कहते सुनती हूँ “कुछ बन जाऊँ यार तब देखना....”, या घर के बङे-बुज़ुर्ग बार बार ये मशविरा देते है, “बेटा पहले कुछ बन जाओ तब ये करना...”।मेरी बहन तीन साल के अपने नन्हें बेटे के लिए दिन-रात बस एक ही दुआ मांगती है कि वो बङा होके कुछ बन जाए.....।दूसरों की क्या बात करुँ...मैं खुद अक्सर बातों बातों में कह देती हूँ, “एक बार कुछ बन जाऊँ बस........”।बहुत से पेरेन्ट्स अपने बच्चों को कहते है, “हम तो अपनी ज़िन्दगी में कुछ बन नहीं पाए इसलिए चाहते है तुम तो कुछ बन जाओ...”
अब यहाँ पर कुछ क्या है ये तो बन्दे-बन्दे पर डिपेन्ड करता है जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, पत्रकार, टीचर, एक्टर...कुछ भी।पर मेरी तो ये समझ नही आता कि आखिर “कुछ बनना” इतना ज़रुरी है क्यूँ....?
बचपन से जवानी के बीच का कीमती समय हम “कुछ बनना” है के बोझ तले दबाते आए है.. अरे यार जो बनना होगा बन ही जाएंगे इतनी टैंशन काहे की...माना planning बहुत ज़रूरी है पर planning ऐसी हो जिसमे मज़ा आए...रो-रो कर कैसे कुछ बनोगे....बन भी गए तो satisfaction शायद न मिल पाए।असल बात तो ये है कि हम “कुछ बनना” इसलिए चाहते है ताकि हम दूसको को दिखा सके कि हम खास है..भीङ से अलग..अरे पर ध्यान दो ऐसे ही लोगो कि अब भीङ हो गई है।
तो मित्रो “कुछ बनने” की tention लेना छोङों और अपने जीवन का हर एक क़ीमती पल जियो... हर एक अवसर का पूरा फ़ायदा उठाओ.. “कुछ” नहीं “बहुत कुछ” बन जाओगे...।