बुधवार, 5 सितंबर 2012

'काश..' के बाद की दुनिया

एक काश... के बाद
होती है अलग ही दुनिया
वो दुनिया
जिसकी हमे ख्वाहिश है,
जिसकी शक़्ल
इस तरफ की दुनिया से
कुछ अलग है,
कुछ ज़्यादा खूबसूरत
किसी नूर से सजी हुई,
लेकिन,
मुझे लगता है अक़्सर
वो दुनिया,
जो अक़्स है ख्वाबों का मेरे
क्यों काश... ने बेईमानी कर
अलग कर दी है मुझसे,
वो काश... के बाद की
ख़्वाबों वाली दुनिया।

13 टिप्‍पणियां:

  1. बस यही एक शब्द काश हमें हर बला से साफ बचा ले जाता है
    शानदार प्रस्तुति

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  2. अच्छी कविता |नई सोच नया रंग |बधाई और ढेरों शुभकामनायें |

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  3. बहुत खूब 'काश'के बाद का संसार ही कुछ अलग होता है !

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  4. इस काश का सहारा न हो तो जीने की वजह नहीं मिलती कई बार ...
    गहरा एहसास लिए रचना है ...

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  5. बहुत सुन्दर अहसास लिए
    प्यारी रचना...
    :-)

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  6. प्रथम प्रणय की पहली-पहली पाती को सलाम

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  7. 'काश' शब्द का प्रयोग कर खुद को बचा लेते हैं...सुंदर रचना

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  8. उम्दा भाव से सजी रचना...बहुत खूब |

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