नया रिश्ता


सुबह-सुबह दरवाज़े पर
सूरज की पहली किरण
संग आज ले आई
एक नया महमान
एक ताज़ी हवा का झोंका,
मुझे देख
वो कुछ मुस्कुराया
कुछ हिचकिचाया
फिर बना लिया मुझसे
एक रिश्ता नया,
रुख्सारों को सहलाकर
बालों को उलझाकर
वो फैल गया कमरे में,
धूल से ढकी
कुछ पुरानी तस्वीरों संग
खेला वो झोंका हवा का,
मेरी खुली डायरी को
पन्ने दर पन्ने पलटकर
बांचता रहा कुछ देर
मुझे कुछ जान समझकर
वो आगे बढ़ा,
कानों में कुछ फुसफुसाया
और कहा
कल फिर मिलने आउंगा
जब तुम अपने जज्बातों को
डायरी में बंद करके
खुदको तनहा करके
नींद में होगी
तब चुपके से
तुम्हारी खिड़की से आकर
हौले से तुम्हें जगाउंगा..

18 टिप्पणियाँ:

वाह बहुत खूबसूरत एहसास ...
स्वागत इस मेहमान का

 

जबरदस्त लिखती हैं आप। मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है आपका। http://dharmendra61.blogspot.com

 

बहुत खूब शबनम जी!

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कल 20/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

 

सुबह की खूबसूरती को शब्‍दों में पिरोकर आपने कविता बनाई
बहुत खूब

हिन्‍दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्‍ट

 

सौंधी सी मधुरम एहसास लिए कविता!

 

“भोर सी प्यारी, धूप सी निश्छल
सबा सी चंचल, ओस सी शीतल”
कितनी सुन्दर रचना.... सादर बधाई...

 

उम्दा लिखा है..बधाई.

 

नाजुक अहसास लिये हवा का झोंका ...बहुत बढि़या ।

 

बहुत ही कोमल एहसास.....

 

khoobsoorat,,ye jhonke aakar thahar kyoon nhi jaate :)

 

ati sundar....!!
komal-komal pyaara sa ehsaas..kuchh guggdata sa.....!!

 

ऐसी यात्रा में बहुत मजा आता है।

 

kya bat hai sabnam ji badhiya kavita hai........naic....

 

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