यूं ही....

एक दिन यूं ही

पानी कुछ

रुखा सा लगा,

हरा पेड़

सूखा सा लगा,

बारिश की बूंदे

उदास लगी

कोई चुप्पी

होंठो के पास लगी

मीठा

फीका सा लगा

चल रहा लम्हा

बीता सा लगा

दौड़ती सड़क

थमी सी लगी,

एक दिन यूं ही

ज़िंदगी में तेरी

कमी सी लगी...

15 टिप्पणियाँ:

एक दिन यूं ही

ज़िंदगी में तेरी

कमी सी लगी.....बहुत ही खूबसूरती किसी की कमी को रचना में बताया है अपने... बहुत खुबसूरत.....!

 

दौड़ती सड़क

थमी सी लगी,

एक दिन यूं ही

ज़िंदगी में तेरी

कमी सी लगी..bahut hi achhi bahut kuch kahti rachna

 

वाह ! बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है।

 

बहुत ही सुन्दर ...

यहाँ भी पधारिये..
Life is Just a LIfe

 

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...

आज आपकी प्रस्‍तुति यहां पर भी ....

http://www.parikalpnaa.com/

 

फीका सा लगा
चल रहा लम्हा
बीता सा लगा
दौड़ती सड़क
थमी सी लगी,
एक दिन यूं ही
ज़िंदगी में तेरी
कमी सी लगी.
..बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति!
हार्दिक शुभकामनायें! .

 

यूँ ही लिखा पर बहुत अच्छा लिखा आपने.


सादर

 

yun hi bahut kuchh ..aur bahut sundar likha hai aapne....pahli bar aai hun ..ab aana jana hota rahega

 

चल रहा लम्हा

बीता सा लगा

दौड़ती सड़क

थमी सी लगी,

एक दिन यूं ही

ज़िंदगी में तेरी

कमी सी लगी...

अच्छी नज़्म है...मुबारकबाद

 

कल 18/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

 

किसी की कमी से जैसे दुनिया रुक जाती है ...
बहुत लाजवाब एहसास ... स्वप्निल से आकाश में जीती है ये नज़्म ....

 

Achhi hai aapki lekh. Mera blog dekhiye shayad achhi lage.

 

बहुत देर से आपके ब्लॉग पर हूँ आपके लेख पढ़ रहा था . अंगदान वाला लेख भी बहुत प्रभावशाली थी . लेकिन इस कविता ने मन मोह लिया. बहुत प्यारी सी दिल को छूती हुई नज़्म .. आपको बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

 

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