लक्ष्मण रेखा

वो मजबूर थी

इसकी मर्ज़ी है

पार करनी है

ये लक्ष्मण रेखा....


उसमें सुरक्षा थी उसकी

इसमें दम तोङती ख्वाहिशें है

वो सुकून के लिए थी

इसमें दम घुटता है

पार करनी है

ये लक्ष्मण रेखा....


ज़माना वो और था

वो डरती थी

कौन बचाऐगा उसे

ये सवाल था गहरा...

ये डरती तो है

पर लङती भी है

सवाल है कई सामने इसके

जवाब पर उसके ये ढूँढती है

क्यूँकि

पार करनी है

ये लक्ष्मण रेखा.....

(निरुपमा पाठक...जानती नहीं हूँ उसको पर जानती भी हूँ...कोई रिश्ता नहीं है मेरा उससे पर रिश्ता है भी...वो भी उस समाज का हिस्सा थी जिसका मैं हूँ... उसने अपनी लक्ष्मण रेखा को पार करना चाहा...पर बलि चढ़ा दी गई...पर निरुपमा तुम ग़लत नहीं थी...ग़लत थी वो लक्ष्मण रेखा...और वो लोग जिन्होंने उसे खीचा था...अफ़सोस कि तुम उसे पार न कर पाई...पर ये लक्ष्मण रेखा हम पार करेंगे....तुम्हें मेरी श्रृद्धांजली....ये कविता....)

तुम्हारा फ़रमान...हमारा जवाब...

तुम्हारा फ़रमान.....

हुक़्म आया तुम चुप रहो

जो कहते है हम वो करो

बाहर ना जाना

चेहरे को छुपाना

घर है सुरक्षित

घर में रहो

बच्चे संभालों,शौहर की सुनों

कुर्सी मेज़ के जैसे अपने अपने काम है

तुम भी अपना काम करो

तुम्हें आज़ादी दी अगर

तुम्हें भेङियें न बख्शेंगे

तुम्हारी फिक्र है हमें

तुम चुप रहो

जो कहते है करो.....

हमारा जवाब....

कौन हो तुम

क्या चाहते हो

हमें चुप कराके क्या पाते हो

डरते हो शायद तभी डराते हो

काम न बने तो

हमे धमकाते हो

क्या लगता है तुम्हें

हम शान्त रहेंगे

उठाओं तुम ईंट ज़रा

पत्थर यहाँ से चलेंगे

बहुत की मनमानी अब सुधर भी जाओ

बेकार में यूँ बात न बङाओ

अब तक सहा है

अब न सहेंगे

न होंगे चुप अब

चुप तुम्हें करा देंगे...

(हाल ही में आए एक फ़तवे ने फिर कुछ लोगों की संकीर्ण सोच को सामने ला दिया है।मैंने उस मुफ्ती की बात को सुना....बहुत बुरा लगा साथ ही गुस्सा भी आया कि आज भी लोग ऐसी सोच रखते है।वो मुफ्ती और फ़तवा तो बस एक उदाहरण है यहाँ ऐसी सोच रखने वाले और भी बहुत है....हर धर्म में,हर समाज में।)

चिराग तले अंधेरा


न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के बस स्टॉप के पास लगे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इस बोर्ड पर लिखा है यह भूमि राष्ट्रीय राजमार्ग परिवहन की है।इस पर किसी प्रकार का अतिक्रण या मलवा इत्यादि फेंकना दंण्डनीय अपराध है। पर ये बोर्ड खुद चारों तरफ से मलबे से घिरा हुआ है साथ ही इसके बगल में दो तीन कच्चे घर भी बने हुए है जो कि अतिक्रमण है।इसे कहते है चिराग तले अंधेरा”…..

ये कैसी सफाई


बरसात से पहले नालों की सफाई करने का एमसीडी का काम ज़ोरों पर है पर सङकों की सफाई का क्या...?ये गंदगी नालों से नकालकर सङको पर डाल दी जाती है जो कई-कई दिनों तक सङकों पर यूँ ही पङी रहती है और अगर इस बीच बारिश हो गई तो बहकर फिर नालों में चली जाती है।समझ नहीं आता इस गंदगी को नालों से निकलवाते ही उठाके क्यूँ नहीं ले जाया जाता