लक्ष्मण रेखा

वो मजबूर थी

इसकी मर्ज़ी है

पार करनी है

ये लक्ष्मण रेखा....


उसमें सुरक्षा थी उसकी

इसमें दम तोङती ख्वाहिशें है

वो सुकून के लिए थी

इसमें दम घुटता है

पार करनी है

ये लक्ष्मण रेखा....


ज़माना वो और था

वो डरती थी

कौन बचाऐगा उसे

ये सवाल था गहरा...

ये डरती तो है

पर लङती भी है

सवाल है कई सामने इसके

जवाब पर उसके ये ढूँढती है

क्यूँकि

पार करनी है

ये लक्ष्मण रेखा.....

(निरुपमा पाठक...जानती नहीं हूँ उसको पर जानती भी हूँ...कोई रिश्ता नहीं है मेरा उससे पर रिश्ता है भी...वो भी उस समाज का हिस्सा थी जिसका मैं हूँ... उसने अपनी लक्ष्मण रेखा को पार करना चाहा...पर बलि चढ़ा दी गई...पर निरुपमा तुम ग़लत नहीं थी...ग़लत थी वो लक्ष्मण रेखा...और वो लोग जिन्होंने उसे खीचा था...अफ़सोस कि तुम उसे पार न कर पाई...पर ये लक्ष्मण रेखा हम पार करेंगे....तुम्हें मेरी श्रृद्धांजली....ये कविता....)

9 टिप्पणियाँ:

सही कहा शबनम......वो लक्ष्मण रेखा ही है.....

 

fikar mat karo.... ek din sab kuchh sahee hogaa...

 

सब कुछ ठीक होने की रफतार बढनी चाहिए

 

"निरुपमा तुम ग़लत नहीं थी...ग़लत थी वो लक्ष्मण रेखा...और वो लोग जिन्होंने उसे खीचा था"

really thoughtful..

 

कल मैंने बहुत कोशिश की लेकिन ब्लॉग खुला नहीं,अब रेगुलर देखना होगा।..अच्छा है बल्कि काफी अच्छा है.।

 

behatareen likha hai. aap ko padhate hue shab ka roothana to maine bhee apane bheetar mehsoos kiya.

 

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