हथेली पर नाम तेरा


फ़ुरसत में बैठते ही

ख़्यालों में खो जाती हूँ

हथेली पर नाम लिखती हूँ तेरा

फिर बार बार उसे मिटाती हूँ....

डरती हूँ कोई देख न ले

हाँ मैं बहुत घबराती हूँ..

तुझे इस ज़माने से

हर लम्हा छुपाती हूँ

कभी नज़रे भी फ़ेरती हूँ तुझसे

छुपके फिर आँसू बहाती हूँ

तेरे निराश होने पर

रूठ के चले जाने पर

कुछ दूर तक पीछा करते हुए

मैं साथ चली आती हूँ..

फिर देखती हूँ

कुछ नज़रों को

जो मुझे घूरने लगती है

बस

वही मेरी हद है

वहीं मैं रुक जाती हूँ...

दिल रोता है मेरा

होठों से मुस्कुराती हूँ...

पलटती हूँ

उन नज़रों का सामना करती हूँ

उनके सामने जाकर

हँसती हूँ खिलखिलाती हूँ

उन्हें यकीन दिला के कुछ

वापस चली आती हूँ...

ढूढंती हूँ तनहाई फिर

किसी कोने में छिप जाती हूँ

इस दुनिया की नज़रों से

दूर चली जाती हूँ...

फिर से सिलसिला शुरू करती हूँ

तेरा नाम हथेली पर अपनी

लिखती हूँ मिटाती हूँ....

29 टिप्पणियाँ:

ख़याल अच्छा है........बधाई !

 

"वही मेरी हद है
वहीं मैं रुक जाती हूँ...
दिल रोता है मेरा
होठों से मुस्कुराती हूँ..."
"अन्तर्द्वन्द", मनोभावों का अति सुंदर एवं सजीव चित्रण - हार्दिक शुभकामनाएं

 

क्या बात है, पढने मात्र से ही पता चल गया कि दिल से निकली सदाये हैं , उम्दा अभिव्यक्ति ।

 

बहुत सुंदर ओर भाव पुर्ण कविता
धन्यवाद

 

ढूढंती हूँ तनहाई फिर

किसी कोने में छिप जाती हूँ

इस दुनिया की नज़रों से

दूर चली जाती हूँ...

फिर से सिलसिला शुरू करती हूँ

तेरा नाम हथेली पर अपनी

लिखती हूँ मिटाती हूँ...



हर दिन बीतने के साथ जो निखार आया है.... वो बहुत ख़ुशी देने वाला है..... बहुत अच्छी रचना.... दिल को छू गई.....

 

किसी ने कहा है:-

लिख कर हमारा नाम उन्होने ज़मीं पर मिटा दिया
उनका था खेल ,हमें खाक में मिला दिया

 

hatheli par tumhara naam likhte hain mitate hain
tumhein ko pyar karte hain tumhein se kion chupate hain...
bahut achcha likha hai... behtareen

 

dil ka dard likh kar bnya kar diya
is chhoti si kavita m purai eahsaso ko
piro diya .
BHUT BADIYA HAI .......

 

MashaAllah ...lajawaab ...akhir bade dino baad aapki likhi gazal dekhne ko mili ....kuch bhi ho gazab ka likhti hai ....bas hamare paas tareef ke liye alfaaz nahi hai ....likhte rahiye

 

क्या बात है शबनम....बहुत खूब मेरे शेर...

 

शब्दों के ज़रिये यूँ सब कुछ नहीं कहते...
कुछ बाते हम इशारों से ही समझ जाते हैं...

 

शबनम साहिबा, आदाब
हर नई रचना के लेखन में
साहित्यिक नज़रिये से
आते जा रहे निखार के लिये
हार्दिक शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

 

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

 

प्यार की दुनिया में अक्सर ऐसा ही होता है ....... किसी की यादें बार बार आती है ...... नाम हातेली पर लिख जाती हैं , मिटाती हैं फिर लिख जाती हैं .......... दिलकश है आपका कहने का अंदाज ........

 

अच्छे भाव लिए सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई ..............

 

फिर देखती हूँ
कुछ नज़रों को
जो मुझे घूरने लगती है
बस
वही मेरी हद है
वहीं मैं रुक जाती हूँ...
दिल रोता है मेरा
होठों से मुस्कुराती हूँ...
पलटती हूँ
उन नज़रों का सामना करती हूँ
उनके सामने जाकर
हँसती हूँ खिलखिलाती हूँ

superrrrrrrrrrrrrrb bahut khoobsurat lines hai bilkul dil ki masoom royo se nikalti hu.

bahut acchhi nazm. badhayi.

 

उन्हें यकीन दिला के कुछ

वापस चली आती हूँ...

ढूढंती हूँ तनहाई फिर

किसी कोने में छिप जाती हूँ

इस दुनिया की नज़रों से

दूर चली जाती हूँ...

फिर से सिलसिला शुरू करती हूँ

तेरा नाम हथेली पर अपनी

लिखती हूँ मिटाती हूँ..

शबनम जी,
बहुत खूबसूरत पंक्तियां----दिल को छूने वाली।
पूनम

 

... बहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण रचना.... रचना पढ्ते-पढते मुझे मेरा एक शेर याद आ गया -
"तेरी खामोशियों का, क्या मतलब समझें
तुझे उम्मीद है, या इंतजार है ।"
..... सुन्दर रचना के लिये बधाई !!!!

 

जितना सुन्दर ब्लॉग,
उससे अधिक खूबसूरत रचना!
शबनम को शुभकामनाएँ!

टिप्पणी कर रहा था इस पोस्ट पर मगर
भूलवश् चली गई किसी और स्थान पर!

 

बेहद खूबसूरत रचना । आभार ।

 

Ho sakta hai k bas likhne ko likh diya ho magar muhje to aapke dil ki aawaz lagti hai ye kavita... behad khubsurat

 

aap ki kavita sundar hai aur patrkarita ka put bhi.dtc ki ladice specal par aap ki khushi bhi nazar aai.khash kar blog ka lay out sunder hai.likhti hain aap achcha --bdhai.
ARIF JAMAL
EDITOR/PUBLISHR
NEW OBSERVER POST-HINDI DAINIK
QUTUB MAIL - URDU DAILY.
www.newobserverpost.tk
www.qutubmail.co.cc

 

uska naam juba pe laya nahi jata,
par ab yeh alam hai ke chupya bhi nahi jata.

pyar ke ahsas ka bhot khubsarti se bayan kiya hai aapne. superb

 

क्या कहूं? शब्द नहीं हैं.. मुझे ग्लानि होती है कि मैं भी उसी पुरुष समाज का एक हिस्सा हूं. काश ये भेड़िये...

 

DIL KO CHOO GAI AAPKE KAVITA,APANI APANI SE LAGI,DIL K KISI KONE ME DABE EHASAAS SI LAGE. ALKA ANAND
alka.anand1@gmail.com

 

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