हर खुशी से महरुम है
ये ज़िन्दगी अब मेरी
कि तेरे बिन अधूरी है
ज़िन्दगी अब मेरी
न सुबह की ता़ज़ग़ी न रात की ठंडक
रूठी हुई है मुझसे ज़िन्दग़ी अब मेरी
है राहों में अब अंधेरा ही अंधेरा
ढूंढती है बस तुझे ही निगाहे अब मेरी
हौसले बढ़ाने को तो सब है मेरे पास
बस नहीं है तो खुद की उम्मीदें अब मेरी
बहुत हक़ से प्यार किया है
पर तुझे कदर कहाँ है मेरी
तू तो मुझे जानता भी नहीं है
फिर कैसे कहूँ तुझे तू ज़िन्दग़ी है मेरी
हर खुशी से महरुम है
ये ज़िन्दगी़ अब मेरी
कि तेरे बिन अधूरी है
ये ज़िन्दग़ी अब मेरी