अधूरी ज़िन्दगी

हर खुशी से महरुम है

ये ज़िन्दगी अब मेरी

कि तेरे बिन अधूरी है

ज़िन्दगी अब मेरी

न सुबह की ता़ज़ग़ी न रात की ठंडक

रूठी हुई है मुझसे ज़िन्दग़ी अब मेरी

है राहों में अब अंधेरा ही अंधेरा

ढूंढती है बस तुझे ही निगाहे अब मेरी

हौसले बढ़ाने को तो सब है मेरे पास

बस नहीं है तो खुद की उम्मीदें अब मेरी

बहुत हक़ से प्यार किया है

पर तुझे कदर कहाँ है मेरी

तू तो मुझे जानता भी नहीं है

फिर कैसे कहूँ तुझे तू ज़िन्दग़ी है मेरी

हर खुशी से महरुम है

ये ज़िन्दगी़ अब मेरी

कि तेरे बिन अधूरी है

ये ज़िन्दग़ी अब मेरी

9 टिप्पणियाँ:

बहुत खूब....... बेहतरीन भावों के साथ बहुत ही खूबसूरत कव्ता.......

 

zindagi se itna shikwa.....? naraz lagte ho zindagi se....manao zindagi ko....maan jayegi....gud poem..

 

hummmmm sabse pahle to sundar bhawo ke liye badhai or sarlta aapki kavita ki pahchan hai...lekhte raho swagat hai!!
mere blog par bhi swagat hai..
Jai Ho mangalmay ho

 

शबनम साहिबा...
सभी की तरह मुझे भी अच्छी लगी ये कविता..
बस, फिर वही बात याद दिला रहा हूं...
आपको अल्लाह ने आला ख्याल की दौलत से नवाज़ा है
सिर्फ इस्लाह की ज़रूरत है..
और हां..
कुछ ज़िन्दादिली के शेर भी कहो..
मेरा एक शेर देखो.

ये हकीकत है तकदीर से जीत पाना भी मुमकिन नहीं,
और ये भी मुनासिब नहीं, आदमी हौसला छोड दे..

उम्मीद है, नये कलाम में ऐसा ही ख्याल पढने को मिलेगा !!!
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

 

कविता के भाव बहुत लाजवाब हैं ......... अच्छी रचना है ..........

 

कविता के भाव बहुत लाजवाब हैं ......... अच्छी रचना है ..........

 

vicharon ki duniya hai dost kho jao in vicharon main yahi ek kavi ki kimti daulat hai

 

padh ke aap ke lafz ye bayan kar baitha dil ki kisi ke dil ko raha bhi pyara ki chahayie hai

 

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