मुझे इन्सान ही रहने दो.....

जो दिल कहता है मेरा

वो बात मुझे सबसे कहने दो

इन्सान की औलाद हूँ मैं

मुझे इन्सान ही रहने दो

न बाँटो मुझे किसी धर्म में

न किसी दायरे में रहने को कहो

इस पिंजरे से निकलना चाहती हूँ मैं

मुझे उस आसमान का हिस्सा बनने दो

किसी रिश्ते की आड़ में

क्यूँ बिताऊँ मैं अपनी ज़िन्दगी

नहीं चाहिये बेटी, बहन, बीवी और माँ का दर्जा

मुझे ज़िन्दगी को अपने ढंग से जीने दो

अपनी इज्जत के नाम पर मुझपर

हुकूमत चलाना अब छोड दो

मेरे सीने पर धङकता एक दिल भी है

उन धङकनो को मेरी तुम बक्श दो

जो दिल कहता है मेरा

वो बात मुझे सबसे कहने दो

इन्सान की औलाद हूँ मैं

मुझे इन्सान ही रहने दो....

7 टिप्पणियाँ:

तुम इन्सान हो और इन्सान ही रहोगी......सृष्टि की एक खूबसूरत रचना....और अगर किसी दायरे में बंधकर तुम्हारी धडकनें रूकने लगती हैं तो उन दायरों से बाहर आने की कोशिश करो...
कभी कभी क़लम से निकले चन्द लफ़्ज भी ज़िन्दगी का दर्द बताने के लिये काफ़ी होते हैं। एक खूबसूरत रचना के लिये शुभकामनायें दोस्त। इसी तरह लिखते रहो....

 

ओफ्फ हो... ये बागी तेवर !!

 

waaqai mein bahut baagi tewar hain...... par achcha bahut laga padh kar.... ek baat to hai shabnam mein ki...... ki SHABNAM MEIN TALENT BAHUT HAI...... aas-paas ki cheezon ko samjhne ki taaqat jo ek writer mein honi chahiye wo hai.... abhi maine poora blog dekha .....shabnam ka .... bahut achcha laga..... aur sabse badi baat ki yahan language jo chuni hai ...... wo bahut easy hai...... communication aisa hi hona chahiye ..... jo aasaani se samajh mein aa jaye....

With all best wishes 4 Shabnam.......


Mahfooz...

 

सच्चे और अच्छे तेवर...आज हर नारी की ये ही पुकार है...आपने उसे शब्द दे दिए हैं...बहुत खूब...

नीरज

 

जिस खुले मन से आपने अपने विचार रखे हैं, मैं उन भावों की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पा रही हूं।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।

 

बहुत सुन्दर में इन्सान हूँ,मुझे इन्सान रहने दो ।

 

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